Anokha Daan

Deep punjabi 2018-01-01 Comments

मीना — दरअसल, ये हमारी दुकान पे फोटोस्टेट का काम सम्भालता है। संजय के पास आज आने का वक्त नही था तो उन्होंने इसे भेज दिया।

डॉक्टर — आपको कोई ऐतराज़ तो नही यदि कोई पर्सनली बात मैं इसके सामने करु। यदि आपको कोई ऐतराज़ हो तो इसे बाहर बिठा देते है।

डाक्टर की ये बात मेरे दिल पे लगी और मैं खुद ही उनके बिन कहे बाहर जाने के लिए उठा। इतने में मीना ने मेरा हाथ पकड़ के वापिस बिठा लिया।

मीना — नही, नही डॉक्टर साब, ये भी अब घर के मेंबर की तरह ही है। आपको जो भी कहना हो, कह दो।

डॉक्टर — आपको शायद पहले भी बताया था के कमी आपमें नही बल्कि आपके पतिदेव में है। उनके शक्राणु बनते तो है लेकिन शरीर से बाहर आते ही मर जाते है। सो सीधे शब्दों में कहूँ तो आपके पति का लम्बा इलाज़ चलेगा। फेर कहीं जाकर आप माँ का सुख भोग सकते है।

डॉक्टर की बात सुनकर मीना थोडा रुआंसी हो गई और हाथ जोड़कर बोली, डॉक्टर साब कैसे भी करो, आप मुझे माँ बनने का सुख दे दो, जितना भी पैसा लगेगा मैंने देने को तैयार हूँ। बस अब और नही सहा जाता। आस पड़ोस की औरते मुझे बाँझ बोलती है। मेरी सासु माँ भी जल्द से पोते का मुंह देखना चाहती है।

उनकी बातचीत से ये तो साबित हो गया था के मीना जी, बेकसूर है। इसमें उनका कोई भी कसूर नही है। इनको तो ऐसे ही सज़ा मिल रही है। मैं भी थोडा सा भावुक हो गया और हम चेकअप करवाके घर पे आ गए। अगले दिन दुकान पे गया तो मालिक ने फेर खाना लेने घर भेज दिया। अब सब कुछ शीशे की तरह साफ हो गया था। मीना ने किचन से आवाज़ देकर मुझे कहा, मेरे पास आओ राजीव,,, मैं किचन में पड़ी एक कुर्सी पे जाकर इनके समीप बैठ गया।

मीना — देखो राजीव, कल जो हुआ, हम दोनों में राज़ ही रहना चाहिए। अपने मालिक को भी शक न होने देना के मुझे ये सब पता है।

मैं — ठीक है मालकिन।

मीना — पता नही कैसे बोलू आपको। एक बात कहनी थी।

मैं — हांजी कहिये मालकिन। आप हुक्म दो बस। आपके लिए तो जान भी हाज़िर है।

मीना — मुझे जान नही चाहिए, लेकिन क्या एक चीज़ मांग सकती हूँ तुमसे ?

मैं — हांजी, क्यों नही बोलो क्या चाहिए आपको?

मीना — तुम तो जानते हो के संजय बच्चा पैदा करने में असमर्थ है। उनके ठीक होने मे पता नही कितना समय लगेगा। सो मैं ये चाहती हूँ। तुम मेरी बच्चा पैदा करने में मदद करो।

मैं — क्या मतलब जी?

चाहे मैं सारी बात एक पल में ही समझ गया था लेकिन फेर भी विस्तार से उनके मुंह से सुनना चाहता था।

मीना — सच में नही समझे या न समझने का ढोंग कर रहे हो।

मैं – नही जी, कसम से सच में समझ नही आया के भला मैं कैसे मदद कर सकता हूँ आपकी?

मीना — सुनो फेर तुम मेरे गर्भ में अपने शुक्राणु छोड़ कर मुझे माँ बनने में मदद कर सकते हो। तुमसे इस लिए कह रही हूँ के संजय के बाद तुम ही घर में मात्र एक इंसान हो जो मेरी मदद कर सकते और मेरा भरोसा कायम रख सकते हो।

मैं – लेकिन मैं ही क्यों और कोई क्यों नही ?

मीना – वो इस लिए के तुमपे घर का सदस्य होने की वजह से हमे पूरा भरोसा है। तुम बात को समझते हो। तुमसे हमारा कुछ भी छिपा नही है। करवाने को ये काम मुहल्ले के किसी भी लड़के को थोडा सा लालच देकर भी करवा सकती हूँ। लेकिन मुझे अपने घर की इज़्ज़त भी प्यारी है। क्या पता जिस से मैं बच्चा लूँगी, वो बाद में मुझे इसके लिए ब्लैकमेल भी करने लग जाये। इस लिए आप मुझे इस काम के लिए एक दम परफेक्ट आदमी लगे। एक आप पे यकीन है, के इस बात को आगे नही लीक नही करोगे..

किसी और पे भरोसा करने से अच्छा है आप मेरी बात मानलो। यदि डॉक्टर्स से भी इलाज़ करवाया तो वो भी क्या पता किस का वीर्य मेरे गर्भाशय में डालेंगे। तुमसे सेक्स करूंगी तो कम से कम ये तो पता होगा इसका बाप कौन है और मुझे तसल्ली तो रहेगी के इसके बाप को मैं जानती हूँ। सो प्लीज़ मेरी विनती मानलो, और मैं ये काम मुफ्त में नही करवाउंगी। इसके लिए जितने पैसे मांगोगे देने के लिए तैयार हूँ। उधर हॉस्पिटल में भी खर्च भरना पड़ेगा। इस से बेहतर तो ये है के वही पैसे तुम रखलो। बोलो क्या राय है आपकी ?

मैं — देखिए मैडम जी, मैं आपकी भावनाओ को समझता हूँ। लेकिन अपने मालिक से मैं गद्दारी नही कर सकता। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।

मीना— इसमें गद्दारी वाली कोनसी बात है। तुम तो उनकी ही मदद कर रहे हो। चाहे चोरी छिपे ही हो रही है। उनका भी दुनिया में नाम रह जायेगा। वरना हमारी जायदाद हमारे शरीक मतलब संजय के भाई और उनके बच्चे सम्भाल लेंगे। क्या तुम भी यही चाहते हो के हमारा अधिकार हमे न मिले। औलाद चाहे बेटी हो या बेटा मुझे कोई फर्क नही पड़ता। बस मेरी कोख हरी होनी चाहिए। मेरे दिल में जो भी बात थी आपको बतादी है। अब आपकी जो भी मर्ज़ी हो बता दो।

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