Badi Mushkil Se Biwi Ko Teyar Kiya – Part 18

iloveall 2017-02-21 Comments

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उस घटना के बाद से मैं ज्यादा ही व्यस्त हो गयी। बेटी जब प्ले स्कूल में जाने लगी तो मुझे उसे पढाई करानी पड़ती थी। उसको स्कूल में छोड़ के आना फिर लेने जाना इन कामों में से जैसे समय ही नहीं निकल पाता था। होली के त्यौहार में जब पापा और मम्मी ने हम दोनों को दिल्ली बुलाया तो अनिल ने मना कर दिया। उसे ऑफिस में ज्यादा काम था और उसे छुट्टी नहीं मिल पा रही थी। आखिर मैं कुछ दिनों के लिए अकेली ही अपने मायके गयी।

एक बार तो मुझे शक भी हुआ की कहीं वह नीना के साथ कुछ करने का गुप्त प्लान तो नहीं बना रहा था? हर बार होली में हम राज और नीना से खूब होली खेलते थे। उस दिन अनिल नीना को रंग लगाने में मेरे और राज के सामने थोड़ी ज्यादा ही छूट ले लेता था। पर तब भी कोई ऐसी बात नहीं हुई की मुझे या राज को कोई शक का कारण नजर आए। हम सब उस बात को हंसी मजाक में टाल देते थे। राज भी बेचारा मुझे रंग तो लगाता था और मुझे इधर उधर छूने की कोशिश भी करता था। पर शायद अनिल या नीना के डर के मारे, या फिर मैं उस से बच कर भाग निकलती थी उस के कारण कुछ ज्यादा कर नहीं पाता था।

मेरे होली के उपरान्त मायके से वापस आने के बाद मैं मेरे जीवन में कुछ अजीब से बदलाव अनुभव करने लगी। अचानक ही मेरे पति का मेरी और आकर्षण जैसे एकदम बढ़ गया. अनिल मेरी छोटी छोटी बातों का बड़ा ध्यान रखने लगा। मेरे साथ उसने ज्यादा वक्त देना शुरू कर दिया। मेरे लिए तो वह एक स्वप्न के समान था। मुझे ऐसे लगा की शायद होली में अनिल की शरारतों से तंग आकर नीना उसे एक और झटका दे दिया था और उसकी समझ मैं आ गया था की उसका मेरे बगैर चारा नहीं था। मेरी माँ वास्तव में ही सच बोल रही थी, की आखिर में पति को अपने घर में अपनी पत्नी से ही सुकुन मिलता है।

पर मेरे मन में यह शंका घर कर गयी की हो न हो मेरे पति ने नीना को पटा ही लिया था और मौक़ा मिलते ही शायद उसे चोद भी दिया होगा। इसी कारण वह इतना खिल रहा था। राज तो टूर पर रहता ही था। कहीं न कहीं कोई एक दिन मौका पाकर उसने बेचारी नीना को अपनी मीठी मीठी बातों में फांस ही लिया होगा। इसी कारण वह इतना फुदक रहा था और बड़ा खुश नजर आ रहा था। मुझे ज्यादा प्यार जता ने का कारण भी शायद यह रहा होगा की वह स्वयं को गुनहगार अनुभव कर रहा था और इसी लिए वह मुझे खुश रखनेकी कोशिश में लगा था।

मुझे ख़ुशी तो थी की अनिल मुझे ज्यादा समय और ध्यान दे रहा था पर मैं उसका अहसान नहीं उसका प्यार चाहती थी। इसी लिए मैं उसके साथ सहजता या आनंदित अनुभव नहीं कर पा रही थी। उसे भी शायद ऐसा ही लग रहा था जिसके कारण हम दोनों में करीबी आ नहीं पायी और मैं उससे सेक्स करना टालती रही।

बात यहीं ख़त्म नहीं थी। वह हमारी सेक्स लाइफ के बारे में भी बड़ा चिंतित लग रहा था। मेरे दिमाग में घर कर गयी थी की अनिल मुझसे प्यार के कारण नहीं पर उसने जो नीना के साथ कुकर्म किया होगा उस दोष के बोझ में दबे होने के कारण यह प्यार जता रहा था।

जब मुझसे रहा नहीं गया तब मैंने एक दिन उससे पूछा, ” डार्लिंग होली की छुट्टियां बिताकर लौटने के बाद मैं देख रही हूँ की तुम मुझसे ज्यादा ही प्यार जताने लगे हो। क्या बात है? क्या तुम मुझसे कुछ चाहते हो?” यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है..

मेरी बात सुनकर अनिल रिसिया से गए। नाराजगी से मुंह बनाकर वह बोले, “कमाल है! बीबी से प्यार न करो तो मुसीबत और बीबी से प्यार करो तो मुसीबत! नहीं डार्लिंग ऐसी कोई बात नहीं है। बस अब मैं समझ रहा हूँ की अपनी बीबी ही अपनी सच्ची दोस्त और अंतरंग साथीदार है।”

मेरा मन किया की मैं मेरे पति से पूछूँ की क्या नीना ने कहीं उसे फिर से फटकार तो नहीं दिया? पर मैंने न पूछना ही बेहतर समझा। मैंने सोचा जो भी होगा अपने आप सामने आएगा या फिर अनिल स्वयं ही बतादेगे। मुझे थोड़ा इन्तेजार ही करना है।

थोड़ी देर बाद अनिल ने मेरे स्तनों को दबाते हुए पूछा, “डार्लिंग, मुझे राज कह रहा था की तुमने उसे कहा की तुम राज की ऋणी हो और वह जो कहेगा वह करोगी। क्या यह सच है?”

मैंने सकुचाते हुए कहा, “हाँ। सच तो है। राज बेचारा आधी रात को मेरी मदद के लिए आया जो था। मैं वास्तव में उसके एहसान के बोझ के निचे जैसे दब गयी थी।”

अनिल: “तो क्या राज तुमसे जो कुछ कहेगा वह तुम करोगी?”

मैं, “हाँ क्यों नहीं करुँगी? आखिर उसके प्रति मेरा ऋण जो है। जब उसका मन करे अगर वह कुछ स्पेशल डिश खाना चाहता है तो मुझे उसे बनाके खिलाने में बड़ी ख़ुशी होगी। पर बात क्या है? शायद तुम कुछ कहना चाहते हो। क्या राज ने तुमसे कुछ कहा?”

अनिल, “अगर राज तुमसे कहे की वह तुम को चोदना चाहता है तो क्या तुम तैयार होओगी?”

मैं एकदम सोच में पड़गई। कहीं मेरे मन के एक कोने में राज से सेक्स करने की इच्छा तो नहीं छुपी हुई थी? क्या इसी लिए मैंने जाने अनजाने में ऐसा वचन दे डाला था? या फिर क्या मैंने जान बुझ कर तो यह वचन नहीं दिया? क्या मेरे मन में यह बात थी की शायद राज मुझसे सेक्स करने की मांग रख ही दे? तो फिर मुझे उस को मना करने का मौका ही न मिले? तब मुझे उससे सेक्स करने के लिए बाध्य होना ही पडेगा। और ऐसे हालात में मुझे उस बात पर कोई निर्णय नहीं लेना पड़ेगा तो फिर मेरा कोई कसूर तो न हुआ न? मैंने तो कोई शुरुआत नहीं की थीं न? मैंने अपने आप को सम्हालते हुए कहा, “यह तुम क्या पागल की तरह बक बक कर रहे हो? तुम्हारे मन में ऐसा विचार कैसे आया?”

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