Anokhi Saja
घर के बाहर रुककर आवाज़ लगाई,” ओ किशन बाबू, बाहर आओ।
2-3 बार ऐसे ही आवाज़ देने पे जब कोई बाहर न आया तो खुद जमीदार बन्द पड़े लकड़ी के टूटे से दरवाजे को खोलकर घर के भीतर चला गया।
अंदर जाकर क्या देखता है के गौरी खाट पे पड़ी है। उसके पास उसके बेटे के इलावा कोई भी नही है। जिसे शयद स्तनपान कराते कराते सो गयी थी। उसके कपड़े नींद की वजह से अस्त व्यस्त से पड़े थे। जिसमे से आधे से ज्यादा गौरी का बदन दिख रहा था। जिसे देखकर पहले तो ज़मीदार की नीयत बिगड़ गयी और मन में सोचने लगा..
आज जैसा वक़्त दुबारा मिले या न मिले क्यों न मौका सम्भाल लू और बहती गंगा में एक डुबकी लगा ही लू। जिस से सारी उम्र की मौज़ बन जायेगी। जैसे ही वो खाट के नजदीक गया तो उसकी पैर चाल से गौरी की आँख खुल गयी और अपने पास किसी अजनबी को पाकर एक दम कपड़े ठीक करती हड़बड़ाती हुई बोली, ” मा.. म.. मालिक आप कब आये ? सन्देस भेज दिया होता मैं खुद आ जाती। बैठो आपके लिए पानी लेकर आती हूँ ।
ज़मीदार — (खाट के पास पड़ी पुरानी सी कुर्सी पे बैठते हुए) — नही नही, गौरी इसकी कोई जरूरत नही है। तुम ये बताओ आज काम पे क्यो नही आई। उस दिन तो बड़ी लम्बी लम्बी डींगे हांक रही थी। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
क्या हुआ हमारे आज के इकरार का ? ज़मीदार ने अपना मालिकाना रौब झड़ते हुए कहा।
गौरी — वो कल रात काम से लौटते ही बहुत तेज़ बुखार हो गया था मालिक, इसलिए आज काम पे हाज़िर नही हो सकी। जैसे ही बुखार उतरेगा, ठीक होकर काम पे वापिस आ जाउगी। मेरी वजह से आपको परेशानी हुई उसके लिए दोनों हाथ जोड़कर आपसे माफ़ी चाहती हूँ। कृपया मुझे माफ करदो।
ज़मीदार — मैंने काम पे हाज़िर होने का नही, पैसो के बारे में पूछा है।
इस बार उसकी वाणी में थोड़ी कठोरता थी।
गौरी — मालिक वो इकरार भी आज पूरा नही हो सकेगा, क्योंके जिस बलबूते पे मैंने वो इकरार किया था। वो अभी पूरा नही हो पायेगा। उसके लिए कम से कम एक महीना ओर लग जायेगा। इस लिए आप वादा खिलाफी की जो सज़ा देना चाहते हो, दे दो। मुझे हर हाल में कबूल है।
ज़मीदार — (उसकी हालत और समय की नज़ाकत को देखते हुए) — खैर ये लो कुछ पैसे दवाई लेकर ठीक हो जाओ और कल दूसरी हवेली पहुँचो। अभी फ़िलहाल जा रहा हूँ। कल सुबह को तेरा वही इंतज़ार करूँगा।
चाहे गौरी को आभास हो गया था के मालिक किस नियत से वहां बुला रहा है ? लेकिन समय की नज़ाकत को देखकर सब्र की घूँट पी गयी। क्योंके उसकी जरा सी भी गलती, बड़ा बखेड़ा शुरू कर सकती थी।
अगले दिन उसका थोडा बुखार कम हुआ। तो वो दूसरी हवेली पे चली गयी। वह जाकर देखा तो अकेले जमीदार के बिना वहां कोई भी नही था। गौरी को आते देख ज़मीदार की बाछे खिल गयी और अपनी मूंछ को ताव देते हुए मन में खुद से बाते करने लगा, जिस दिन का तू कई महीनो से इंतज़ार कर रहा था, राजेन्द्र सिंह आखिर वो आज आ ही गया ।
आज तो तुम्हारी हर इच्छा पूरी होने वाली है । जो कल्पना में देखता या सोचता है तू, और चेहरे पे हल्की सी मुस्कान लाकर पास आ रही गौरी को देखने लगा।
ज़मीदार — आखिर आ ही गई गौरी तू, मुझे तो लगा था के आज भी कल की तरह बुखार की वजह से आ नही पाओगी।
गौरी — हम गरीब जरूर है मालिक, लेकिन ज़ुबान के एकदम पक्के है। वो बात अलग है किसी वजह से थोड़ा देरी से आये। आपको बोला था के बुखार उतरते ही आउंगी तो आ गयी। अब बोलो क्यों बुलाया है आपने, क्यूके मेरे हिसाब से इस हवेली का कोई भी काम अधूरा रहता नही है। सब काम पिछले हफ्ते ही तो मैं पूरे करके गयी थी।
ज़मीदार — गौरी, जरूरी नही हवेली के किसी काम ही बुलाया हो तुझे, कोई और भी काम हो सकता है।
चाहे गौरी समझ चुकी थी के वो किस और काम के लिए बोल रहा है? लेकिन फेर भी उसके मुंह से सुनना चाहती थी।
गौरी — और कोन सा काम मालिक ?
ज़मीदार — वही जो तूने बोला था के यदि दिए समय में आपका क़र्ज़ न चुकता कर पाऊँ तो जो मर्ज़ी दण्ड लगा लेना।
गौरी — हाँ बोला था, लेकिन सज़ा तो उस हवेली में भी दे सकते थे न, फेर इतनी दूर बुलाने की जरूरत क्या थी।
ज़मीदार — वहां सब है तेरी मालकिन, छोटे ज़मीदार, घर के नौकर चाकर, सो उनके सामने तुझको सज़ा देना मुझे शोभा नही देता था। इस लिए यहां अकेले में तुझको बुलाया है। यहां तुझे जी भर के सज़ा दूंगा ।
इस बार उसकी बोली में दोहरापन था।
गौरी — चलो ठीक है, बताओ क्या सज़ा है मेरी ??
ज़मीदार — किस तरह की सज़ा चाहते हो बोलो ?
गौरी — बोलना क्या है, मालिक जो सज़ा है बोलदो, मेरा ज़ुर्म जिस सज़ा के काबिल है, उसी तरह की सज़ा दे दो।
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