Bhoot To Chala Gaya – Part 2
This story is part of a series:
कुछ दिनों के बाद समीर सर ने मुझसे आग्रह किया की मैं उन्हें ‘समीर सर’ न कहूँ। मैं उन्हें मात्र समीर ही कहूँ। शुरू में थोड़ा मुश्किल लगा पर धीरे धीरे मैं उनको समीर के नाम से बुलाने लगी। यह और कई और कारणों से मेरे और समीर के बिच की औपचारिक दिवार टूटने लगी। पर मैं थोड़े असमंजस में थी। वह इसलिए की समीर की उदारता और सहायता के उपरान्त मैंने कईबार देखा की वह भी छुप छुप कर मेरे स्तनों को और मेरे नितम्ब को ताकते रहते थे। खैर मेरे पति भी कहते थे की मेरे नितम्ब (या कूल्हे या चूतड़ कह लो), थे ही ऐसे की मर्दों के ढीले लन्ड भी खड़े हो जाएँ। तो फिर बेचारे समीर का क्या दोष?
हमारे दफ्तर में कई उम्रदराज और शादीशुदा मर्द भी मेरे करीब आने की कोशिश में लगे हुए थे। पर उन सब में समीर कुछ अलग थे। मैं समीर की बड़ी इज्जत करती थी। वह अच्छे और भले इंसान थे। वह बिना कोई वजह या बिना कोई शर्त रखे मेरी मदद करते थे। उनके मुझे ताकने से मुझे बड़ी बेचैनी तो हुई पर मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया। हमारे बिच आपसी करीबी बढ़ने लगी। हम दफ्तर की बात के अलावा भी और बातें करने लगे। पर मैं सदा ही सावधान रहती थी की कहीं वह मेरा सेक्सुअल लाभ लेने की कोशिश न करे।
मुझे तब बड़ा दुःख हुआ जब की मेरा डर सच साबित हुआ। एक दिन मैं समीर सर के साथ पास वाले रेस्टोरेंट में चाय पिने गयी थी। समीर ने मेरी तुलना कोई खूबसूरत एक्ट्रेस से की और मेरे अंगों और शारीरिक उभार की प्रशंशा की। उन्होंने कहा की मैं सेक्सी लगती हूँ और ऑफिस के सारे मर्द मुझे ताकते रहते हैं। फिर भी मैंने संयम रखा और कुछ न बोली, तब उन्होंने मुझे मेरे विवाहित जीवन के बारेमें पूछा। मेरे कोई जवाब न देने पर उन्होंने जब पूछा की मेरे कोई बच्चा क्यों नहीं है तो मैं अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पायी।
तब मैंने उनको बड़े ही कड़वे शब्दों में कहा की वह मेरा निजी मामला था और समीर को उसमें पड़ने की कोई जरुरत नहीथी। सुनकर जब समीर हंसने लगे और बोले की वह तो ऐसे ही पूछ रहे थे और मजाक कर रहे थे, तब मैंने उनसे कहा, “समीर सर, मैं आपकी बड़ी इज्जत करती हूँ। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
मैं मानती हूँ की आपने मेरी बड़ी मदद की है. पर इसका मतलब यह मत निकालिये की मैं कोई सस्ती बाजारू औरत हूँ जो आपकी ऐसी छिछोरी हरकतों से आपकी बाहों में आ जायेगी और आपको अपना सर्वस्व दे देगी। आप सब मर्द लोग समझते क्या हो अपने आपको? आगेसे मुझसे ऐसी छिछोरी हरकत की तो मुझसे बुरा कोई न होगा। यह मान लीजिये। समझे?” ऐसा कह कर मैंने उनके चेहरे के सामने अपनी ऊँगली निकाल कर कड़े अंदाज में हिलायी और उनकी और तिरस्कार से देख, रेस्टोरेंट से बिना चाय पिए उठ खड़ी हुई और ऑफिस में वापस आ गयी।
मैंने कड़े अंदाज में समीर को डाँट दिया और मेरी जगह पर वापस तो चली आयी, पर कुछ समय बादमें मैंने जब उनकी शक्ल देखि तो मेरा मन कचोटने लगा। उन्हें देख मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उनका सारा संसार उजड़ गया हो। उनकी आँखे एकदम तेजहीन हो गयी थीं, उनकी चाल की थनगनाहट गायब थी, उन्होंने किसीसे भी बोलना बंद कर दिया था। थोड़ी देर बाद मैंने देखा तो वह ऑफिस से चले गए थे। मैंने जब पूछा तो पता लगा की उन्होंने बॉस से तबियत ठीक नहीं है ऐसा कह कर आधे दिन की छुट्टी ले ली थी।
अगले तीन दिन तक समीर ऑफिस नहीं आये। सोमवार को जब मैं दफ्तर पहुंची तो मैंने समीर को बदला बदला सा पाया। वह पुराने वाले समीर नहीं थे। उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी। आखों में चमक नहीं थी। मेरे डाँटने का उनपर इतना बुरा असर पड़ेगा यह तो मैंने सोचा ही नहीं था। शायद मैंने जरुरत से ज्यादा कड़वे और तीखे शब्द बोल दिए ऐसा मुझे लगने लगा, क्योंकि उनका चुलबुला मजाकिया अंदाज एकदम गायब हो गया था। मुझे ऐसा लगा जैसे कई दिनों से उन्होंने खाना नहीं खाया था। उस दिन जब हम पहली बार मिले तो समीर ने बड़बड़ाहट में मुझसे माफ़ी मांगी और अलग हो गए। उस पुरे हफ्ते न तो वह मेरे पास आये न तो उन्होंने मेरी और देखा।
बॉस उनसे बड़े नाराज थे क्योंकि समीर काममें अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते थे और बड़ी गलतियां कर बैठते थे। ऑफिस में सब हैरान थे। मैंने कुछ ऑफिस कर्मचारियों को आपस में एक दूसरे से बात करते हुए सूना की समीर का किसी लड़की से चक्कर चल रहा था और उस लड़की ने समीर को बुरी तरह से लताड़ दिया जिसकी वजह से वह बड़े दुखी हो गए थे। सौभाग्य से किसी को यह पता नहीं था की वह लड़की कौन थी। समीर का ऐसा हाल करने के लिए सब मिलकर उस लड़की को कोसते थे।
उस प्रसंग के बाद समीर ने मुझसे अति आवश्यक काम की बातों को छोड़ और कुछ भी बात करना बंद कर दिया। यहाँ तक की उन्होंने औपचरिकता जैसे “गुड मॉर्निंग” बगैर भी कहना बंद कर दिया। समीर एकदम अन्तर्मुख हो गए। दफ्तर के सारे कर्मचारियोंको यह परिवर्तन बड़ा अजीब लगा। समीर अपनी चुलबुले स्वभाव और दक्षता के कारण हमारे ऑफिस की जान थे। मैं बहुत दुखी हो गयी और अपने आपको दोषी मान कर मुझे बड़ा पश्चाताप होने लगा। मैं कई बार समीर के पास गयी और उन्हें समझाने और क्षमा मांगने की कोशिश की पर वह अपने हाथ जोड़ कर मुझे दूर ही रहने का इशारा करते थे। मैं उन्हें अपने अंतरंग कोष में से बाहर लानेमें असफल रही।
Comments