Dosti Ka Karz Ada Kiya – Part 1

Deep punjabi 2016-07-03 Comments

उसकी माँ बोली के बेटा मुझे तो मालूम नही सुनीता से पूछलो।

मेने सुनीता को आवाज़ दी तो वो बोली के देवी ऊपर छत वाले कमरे में दवा लेके सोया हुआ है।

मैं उपर छत पे उसके पास चला गया और गेट पे नौक किया देवी बोला,” खुला है भाई आजो अंदर कौन है ?

मैं अंदर जाके उस से हाथ मिलाया और कल काम पे न आने की वजह पुछी तो बात  टाल गया के हल्का सा बुखार था इस लिए नही आया। लेकिन मेने उसकी चोरी पकड़ ली और दुबारा पूछा ऐसे आँखे क्यों चुरा रहा है यार।

फेर कही जाके उसने सारा भेद खोला क शादी से पहले मैंने गलत संगत में पड़के नशा बहुत किया था । जिसका अंजाम आज मुझे भुगतना पढ रहा है। मेरी बीवी के बचा नही ठहरता। यदि ठहर जाये तो एक दो हफ्ते में अपने आप अबोर्शन हो जाता है। अब मैं क्या करूँ। माँ को जल्दी से पोते का मुँह देखना है अब उसको कैसे समझाऊ के आपका सपना कभो पूरा नही हो सकता।

इतना कह कर वह रोने लगा मेने उसे गले लगाके चुप कराया और सब्र रखने को कहा।

इतने में सुनीता ऊपर चाय लेके आ गयी और उसकी भीगी आँखे देख क बोली

ए जी क्या हुआ आपको, आप रो क्यों रहे हो।

देवी बोला नही तो मैं कहाँ रो रहा हूँ

यह तो पसीना आ गया आँखों पे।

पर कहते है न झुठ ज्यादा देर नही टिकता।

और फेर फिसल गया और रोने लगा। मेने सुनीता को पास बिठाया और हाथ से इशारा किया क चुप रहो मैं सम्भल लूंगा इसे। सुनीता बोली मैं माजी को खाना देके अभी आती हूँ आप बाते करो।

देवी बोला, देख यार दीप न तो हम एक गांव क है और न एक जाती के फेर भी हम में कितना प्यार है सगे भाइयो से बढ़कर। आपके गांव में हम परदेसी है। एक तुझसे ही दिल मिला है पुरे गांव में। सो दोस्ती के नाते मेरी एक मदद करेगा तू?

मेने इस बार भी बिन सोचे समझे हाँ कह दिया।

देवी बोला,” यह बात के मुझमें कमी है सिर्फ हम तीनो ही जानते है, तू, सुनिता और मैं या वह डॉक्टर।

सो प्लीज़ यार अब मैं शायद ही इस घर को इसका वारिस दे पाऊँग।

और सुनीता भी तेरी जान पहचान वाली है। तू हमे एक बच्चा भीख में दे दे यार प्लीज़

इस बार उसकी बातो में रोना, गिडगिड़ाहट, मजबूरी और लाचारी सब कुछ था।

प्लीज़ यार मुझे निराश मत करना। इसके लिए तुझे जो चाहिए वो लेकर दूंगा। पर प्लीज़ मेरा इतना सा काम करदे तू।

उसकी बात सुनकर मैं हैरान सा रह गया क्योंके मेने ऐसा सपने में भी नही सोचा था।

मेने उस वक़्त उसे सोचने का वक़्त लेके अपने घर आ गया।

अगले दिन देवी भी कम पे आया और बोला,” तो जनाब क्या सोचा आपने?

मेने कहा यार बड़ा अजीब सा गिफ्ट मांग लिया। मना भी नही कर सकता और दे भी नही सकता। क्यूके आप दोनों के बारे में ऐसा कभी सोचा नही मैने।

मेरी बात काटते हुए देवी बोला,” अच्छा तो तू क्या चाहता है के सुनीता अजनबियों से सेक्स करे।

मैंने कहा नही भाई मेने ऐसा कब बोला आपको ?

देवी ;– नही बोला पर मतलब तो यही है न इसका!

तुम एक सवाल नही हल कर सकते मेरा।

सोचो जरा इस घर में तेरे एक एहसान से बच्चे की किलकारी गूंजेगी।

हमे माँ बाप का सुख मिल जायेगा और दादी को पोता मिल जायेगा।

तेरी एक हाँ से कितनो को ख़ुशी मिलेगी और एक बात यह बात हम तीनो में रहेगी ।

मैंने समय की नज़ाकत को देखते हुए हाँ करदी।

इतने में वहां सूंनीता भी आ गयी और बोली दोनों भाइयो में क्या खिचड़ी पक रही है।

मेने कहा,” हम क्यों बताये आपको

आप का क्या पता मेरी खिचड़ी खा जाओ

और हम सब हंस पड़े।

इतने में हमारे मालिक ने देवी को आवाज़ लगादी। वो मालिक की बात सुनने चला गया और अब हम दोनों रह गए अकेले।

मेने सुनीता से पूछा,” क्या तुमहे कोई ऐतराज़ है इस बात पे?

वो बोली,” कोनसी बात पे ?

मेने कहा,” जो देवी बोल रहा है ?

वह हंस रही थी और शरारत वाले मूड में थी।

कहानी पढ़ने के बाद अपने विचार निचे कोममेंट सेक्शन में जरुर लिखे.. ताकि देसी कहानी पर कहानियों का ये दोर आपके लिए यूँ ही चलता रहे।

बोली जब मुन्ने का पापा है राज़ी तो क्या कहे मुन्ने की माजी और ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी।

उस दिन से सुनीता को देखने का नज़रिया बदल गया। जब उसे भाभी कहता वह डांट देती क अब भाबी नही सिर्फ जानू या सुनीता बोलो अच्छा लगता है सुन ने में।

पढ़ते रहिये.. क्योकि ये कहानी अभी जारी रहेगी और मेरी मेल आई डी है “[email protected]”.

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