EK Galti Sudharne Ki Khatir

Deep punjabi 2017-07-03 Comments

कुछ ही पलों में ट्रे में दो कांच के गिलास लिए विकास हाज़िर खड़ा था। ट्रे में से एक गिलास उठाकर संजीव ने मेरी और पेश किया।

मैं — माफ़ करना भाई, मैं दारू नही पीता।

संजीव — अरे पगले कोनसी दुनिया से आया है तू ? तेरी उम्र के लड़के तो ड्रमो के ड्रम पीकर भी डकार नही लेते और तू कह रहा है के मैं दारू नही पीता। पीले पीले बड़ी मुश्किल से तो ख़ुशी का माहौल आया है, न जाने फेर कब तुमसे मुलाकात होगी।

माँ — (मेरी तरफदारी करते हुए) — संजीव, संजय सही बोल रहा है। वो दारू को हाथ तक नही लगाता।

(मैने कालज में दो बार बियर पी थी, लेकिन घर पे इस बात का पता नही था)

संजीव — अरे आंटी ये तो गलत बात है ना। एक ही शहर के हम इस ख़ुशी के महौल पे इकठे हुए है और मुझे यहां कम्पनी देने वाला कोई भी नही है। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

आप ऐसा करो के एक पेग आप ले लो। जिस से मुझे कम्पनी भी मिल जायेगी और आपका भी दिल डांस में लगा रहेगा।

माँ — देखो संजीव, दारू तो मैं भी नही पीती। हाँ यदि आपको कम्पनी ही चाहिए तो चलो मैं कोल्ड ड्रिंक ले लेती हूँ।

संजीव को माँ की बात जच गयी। उसने एक पेग वापिस करते हुए कहा,” जा विकास आंटी के लिए बढ़िया सा कोल्ड ड्रिंक लेकर आ।

कुछ ही पलो में विकास मेरे और माँ के लिए दो कोल्ड ड्रिंक गिलास लेकर हाज़िर हुआ।

हमने अपना गिलास उठाया और सिप सिप करने पीने लगे।

मेरे मन में भी आया के आज कोल्ड ड्रिंक का स्वाद कुछ बदला बदला सा क्यों है।

(पीने वाले एक पल में पहचान लेते है, जरूर इसमें कुछज गड़बड़ लगती है)

बातों बातो में मैंने उनसे आँख चुराकर कोल्ड ड्रिंक टेबल के निचे पड़े डस्टबीन में डाल दिया। इस तरह हमने एक एक गिलास खत्म कर दिया था।
इतने में एक एक गिलास और आ गया। मैंने फेर डस्टबिन में गिरा दिया और माँ ने वो भी गटक किया।

दो गिलास खत्म होने पे संजीव बोला,” चलो आंटी डांस करते है। जिस से बाते भी हो जायेगी और डांस भी करते रहेंगे।

माँ उसका कहना मोड़ न सकी और वो दोनों एक दूसरे की कमर में हाथ डाले अन्य डांस करने वाले कपल्स के बीच शामिल हो गए।

थोड़ी देर तक ऐसे ही डांस चलता रहा। जब वो थक कर चूर हो गए तो आराम करने के लिए लेटने योग्य जगह ढूंढने लगे।

माँ — संजय बेटा, मैं बहुत थक गयी हूँ। मैं आराम करने अपने कमरे में जा रही हूँ। जल्द ही फ्री होकर तुम भी आ जाना। बहुत रात हो गयी है।

संजीव — चलो, आंटी आपको आपके कमरे तक पहुंचा देते है।

एक तो कोल्ड ड्रिंक में मिली बियर के नशे के कारण और दूसरा थके होने के कारण माँ से अच्छी तरह से चला भी नही जा रहा था ।

माँ — हाँ ये ठीक रहेगा, मेरा सिर पता नही क्यों चकरा सा रहा है। सर में भारीपण सा महसूस हो रहा है। मुझे मेरे कमरे तक पहूँचा दो संजीव। अब मैं सोना चाहती हूँ।

संजीव माँ की कमर में हाथ डालकर अपनी पर्सनल गर्ल फ्रेंड की तरह, उनको हमारे कमरे की तरफ लिए जा रहा था।

इतने में विकास आया और मुझे बोला, “चलो यार हम भी थोडा घूम फिर आये। जब से आये है यही बन्द कमरे में बैठे है।

मुझे उसकी चलाकी का पता नही था के वो मुझे चाल से मेरी माँ से दूर कर रहा है।

मुझे उसकी बात में दम लगा और हम होटल के बाहर सड़क पे आ गए । वहां हमने सिगरेट पी और गर्ल फ्रेंड के सम्बन्धी बाते की।

जब हमे आये हुए एक घण्टे के करीब हो गया तो मैंने कहा,” चल विकास यार बहुत देर हो गई हमे आये हुए। अब हमे वापिस जाना चाहिये, भूख भी बहुत लगी है, चलकर खाना खाते हैं और मेरी माँ मेरी राह देख रही होगी।

उसे भी मेरी बात ठीक लगी। उसने अपनी मोबाइल से पता नही किसे काल की और जवाब में ओके बोलकर फोन काट दिया।

थोड़ी देर बाद हम होटल में आये। हमने देखा लोगो की भीड़ बहुत कम हो गई थी। मतलब कुछ लोग अपने कमरो में तो कुछ अपने घरों में चले गए है। खाने की मेज़ पर बस 5-6 लोग ही बैठे खाना खा रहे थे।

मैंने वहां संजीव को भी देखा। जो ऐसे ही वहां बैठा शयद विकास का इंतज़ार कर रहा था।

मैंने खाना खाया और संजीव से माँ के बारे में पूछा,” क्यों भाई माँ ने खाना खाया या बस ऐसे ही सो गई।

संजीव — नही यार मैं खुद खाना आपके कमरे में पहूँचा कर अाया था। हमने साथ में वही खाना खाया।

खाना खाकर मैंने उनसे अलविदा लेनी चाही। परन्तू वो मुझे आज रात न सोने का बोल रहे थे। इस तरह मौज़ मस्ती करते जब मैंने मोबाइल पे समय देखने के लिए नज़र डाली तो सुबह के साढ़े 3 बज रहे थे। मैंने उनसे थक जाने ओर नींद आने का बोलकर अपने कमरे की तरफ चल दिया। मेरा कमरा अंदर से बन्द था। जब मैं 2-3 बार डोर बेल्ट बजाई तो माँ ने दरवाजा खोला।

वो बहुत घबराई हुई सी थी और उनके कपड़े भी बीती हुई रात वाले पहने हुए थे। जो के अस्त व्यस्त से थे। जैसे उनके साथ हाथापाई हुई हो।

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