Meri Dukhi Chachi Lajwanti
मैं- अब बड़ा तो होना ही है, वैसे आप भी काफी अच्छे और सुन्दर हो गए पहले से.
चाची- फिर मजाक शुरू, झूठा कहीं का.
मैं- चाची तेरी सौगंध. तू एक दम हीरोइन के जैसी लगती है.
चाची- हाये माँ, मेरी झूठी कसम ना खा रे भतीजे, खानी है तो चाचा की ही खा ले, कब तक पालूंगी इसे. छी ये तो बोझ ही बन गया मेरे ऊपर, मैं परेशान हो गयी सही में बहुत ज्यादा.
मैं- परेशान ना हो चाची, अब तेरा भतीजा आ गया है, सब कुछ ठीक हो जायेगा.
चाची- लेकिन तू तो कुछ दिनों के लिए आया है ना? फिर वापस दिल्ली चला जायेगा.
मैं- अगर यहाँ मेरा मन लग गया तो यहीं रहूँगा चाची, वैसे भी मेरा गाँव है ये और अगर मन नही लगा तो तुझे भी दिल्ली ले चलूंगा अपने साथ.
चाची- मैं कैसे जा सकती हूँ, तेरे चाचा जब तक हैं तब तक तो बिलकुल नहीं.
मैं- अरे चाचा को डायन के पास छोड़ दूंगा. तू चिंता मत कर.
चाची- और आदर्श?
मैं- चाची वो यहीं गाँव की जमीन और घर को संभाल लेगा, जब उसकी पढ़ाई पूरी हो जायेगी तो हम उसे बुला लेंगे, और वैसे भी घर में कोई तो होना चाहिए.
चाची- हाँ ऐसा हो सकता है, लेकन पहले चाचा का देख कुछ, क्या करना है.
मैं- तू बिलकुल टेंशन मत ले चाची.
(मुझे आश्चर्य हुआ कि चाची इतनी जल्दी मान जायेगी, दरअसल चाची भी काफी परेशान हो गयी थी, अब उसे भी आजादी चाहिए थी, चाची इतने सालों से पिंजरे में कैद हुयी पंछी के समान थी जो खुले आसमा में उड़ने का भरपूर आनंद लेना चाहती थी, और वो मेरे सीने से लिपट गयी. मैने चाची के माथे में चुम दिया जिससे वो लज्जा गयी और उसका गोरा दमकता हुआ चेहरा शर्म से लाल हो गया)
मैं- क्या हुआ चाची, चेहरा इतना लाल काहे हो गया?
चाची- इतने वर्षों बाद किसी ने चुम्बन दिया है भतीजे, तू मुझे ऐसे ही प्यार करते रहना, मैं प्यार की भूकी हूँ, मुझे धन दौलत नहीं चाहिए, बस प्यार चाहिए जो तेरे चाचा मुझे न दे सके. यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।
मैं- मैं वादा करता हूँ चाची, ऐसे ही तुझे प्यार करता रहूंगा और किसी चीज़ की कमी नहीं होने दूंगा, हर समय तुझे खुश रखूँगा.
चाची- संजीव अब तू बड़ा हो गया है, एक औरत की जरूरत क्या होती है? जिसका पति इतने सालों से बीमार हो, तुझे पता होना चाहिए. क्या तू वो सब कुछ मुझे दे पाएगा जो तेरे चाचा ने नही दिया?
मैं- हां चाची, सब कुछ दूंगा, जितना मुझ से हो सकेगा.
(इतने में आदर्श स्कूल से आ जाता है और मुझे देखकर खुश हो जाता है)
आदर्श- भाई नमस्ते, कैसा है?
मैं- भाई मैं तो मस्त हूँ, तू सुना.
(फिर आदर्श के साथ गप्पे शप्पे चलती है, रात होती है तो आदर्श, मैं और चाची टाइम पास करने हेतु केरम खेलते हैं, चाची ने गुलाबी रंग की मखमली नाईटी पहनी है, जिसमे अंदर उसने ब्रा नहीं डाला है इसका पता उसके उरोजों में दमकते सख्त निप्पल बता हैं.
चाची झुक कर शॉट मारती है तो उसके उरोजों की काली संकरी घाटी का वीभत्स नज़ारा देखकर मेरे पैजामे में मेरा दो कौड़ी का लण्ड झटके मारने लगता है, केरम खेलते-खेलते बीच में मैं चाची को आँख मारता हूँ और अपने होंठो में किसी हवसी के जैसे जीभ फेरता हूँ, तो चाची सकपका जाती है और कमिनीपूर्ण मुस्कान देती है.
आधा घंटा केरम खेलने के बाद और डिनर करने के पश्चात हम सोने की तैयारी करते हैं, आदर्श अपने कमरे में गहरी नींद में सो जाता है, चाचा को मैं उठाकर बेड पर पटक देता हूँ)
चाची- तू हमारे साथ ही सो जा भतीजे.
मैं- लेकिन एक बेड पर हम तीनो कैसे आएंगे चाची?
चाची- अरे बाहर मच्छर बहुत हैं, फिर मत बोलना.
मैं- ठीक है चाची, चाचा बीच में ही सोयेगा या साइड में कर दूँ?
चाची- किनारे कर दे चाचा को, मैं बीच में सो जाती हूँ और तू मेरे बगल में लेट जा.
(फिर चाची कमरे की बत्ती बुझा देती है और हलकी बत्ती वाला बल्ब जला देती है, हम बिस्तर पर लेट जाते हैं. मेरा और चाची का चेहरा एक ही तरफ था, हम दोनों एक दूसरे की आँखों में देखे जा रहे थे, चाची के सांस लेने के साथ साथ उनके उरोज ऊपर नीचे हो रहे थे,
यह विहंगम दृश्य देखकर मेरे लोड़े ने हरकत करनी शुरू करदी और अपनी औकात में आ गया. ज्यादा जगह न होने की वजह से हम काफी चिपके हुए थे तो मेरा लण्ड खड़ा होकर सीधा चाची के पेट से टकराया और झटके के साथ साथ पेट को छूता हुआ आनंद ले रहा था.)
चाची- उईईई माँ, ये क्या है?
मैं- सॉरी चाची, इसे पता नहीं क्या हो गया.
चाची- अच्छा जी, बहुत भोला बन रहा है, बता कैसे खड़ा हुआ ये और क्यों?
मैं- ये कभी कभी ऐसे ही खड़ा हो जाता है चाची.
चाची- तो बैठता कैसे है फिर?
मैं- मैं जब हिलाता हूँ तो बैठ जता है.
चाची- अच्छा जी, तो अभी हिलाएगा तू?
मैं- हाँ चाची, लेकिन बाथरूम में जाकर, तेरे सामने नहीं.
चाची- तुझे पता है जब तू 7 साल का था तो पूरे घर में नंगा ही घूमता था, मैंने तुझे नंगा देखा है संजीव, चाची से कैसी शर्म, चल अपना पैजामा उतार.
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