Meri Dukhi Chachi Lajwanti
मैं- लेकिन चाची, उस समय मैं छोटा था, अब बड़ा हो गया हूँ.
चाची- लेकिन वेकिन कुछ नहीं, चाची का आदेश है, उतार पैजामा.
मैं- ठीक है रानी साहिबा.
(और मैं अपना पैजामा उतार देता हूँ, मेरा
खड़ा लण्ड झटके मारते हुए सीधा चाची को सलामी देने लगता है जिसे देखकर चाची का मुख आश्चर्य से खुला का खुला रह जाता है, मेरा विशालकाय शिश्न देखकर चाची घबरा जाती है)
चाची- हाये दय्या, ये क्या सपोला है रे, कैसे पालता है तू इतने बड़े सपोले को संजीव. हाये रे, इसे तो बिल में डालकर रखना चाहिए.
मैं- बिल में कैसे चाची?
चाची- अरे लल्लू, बेवकूफ लड़के, नेवले या सपोले के लिए एक बिल की जरुरत होती है, वैसे ही तेरे सपोले के लिए भी बिल चाहिए, और वो भी गहरा बिल.
मैं- तो ये बिल कहाँ मिलेगा चाची?
चाची- कितना भोला है भतीजे तू, बिल लड़की के पास होता है, लेकिन लड़की का बिल तेरे सपोले के लिए छोटा होगा इसलिए इसे किसी प्रौढ़ औरत का बिल चाहिए जहाँ यह आराम से रह सके और आ जा सके, समझा लल्लू राम?
मैं- तो आप भी तो औरत हो, आपके पास गहरा बिल है क्या?
चाची- हाये दय्या, मैं तो लड़की हूँ अभी, लेकिन फिर भी मेरा बिल काफी गहरा है.
मैं- तो दिखाओ ना चाची अपना बिल, प्लीज.
चाची- चाची का बिल देखेगा भतीजा? गहराई तो सपोले से नापनी होगी भतीजे.
मैं- तो उसमें क्या, नाप लूंगा वो भी.
(हमारी ये सब अश्लील बातें दूसरी ओर लेटे पागल चाचा सुन रहे थे, तभी चाची ने अपनी नाईटी अपने पेट तक उठा दी और अपनी मनमोहक बालों से लबालब भरी हुई फुद्दी के दर्शन करवा दिए, हालाँकि चूत स्पष्ट दिख नही रही थी परंतु झाँटों को फाड़ते हुए चूत से झूलता हुआ चमड़ा साफ़ दिख रहा था, यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।
मोटी मोटी मखमली गोरी जंघाएँ लोडा खड़ा कर देने वाली थी, जिसे देखकर शायद चाचा का लण्ड भी फूल गया था. अब मेरी आँखों के सामने चाची की झाँटों से छिपी हुई चूत पुकार रही थी- “संजीव, भतीजे आओ, जल्दी आओ, और चाटो, जी भर कर रसपान करो, फाड़ डालो, चोद डालो, कच्चमर बना डालो, चटनी बना दो भतीजे”)
मैं- वाव चाची, इतनी बड़ी झाँटें, और चमड़ा, वाव.
चाची- भतीजे, असली सुरंग तो अंदर है, ये तो द्वार है मेरे लाल.
(मैं अपने कांपते हुए हाथों से झाँटों को हटाकर, चाची की चूत के चमड़े रूपी द्वार को दो उँगलियों से खोलता हूँ तो लाल रंग का गर्म हुयी भट्टी समान मांस चिपचिपे पानी से चमक रहा था, जिसे देखकर मैं दंग रह गया)
चाची- भतीजे, अह्ह्ह्ह… पहले अपनी जीभ से गहराई नाप फिर सपोले को डालना और अपना बसेरा बना देना.
मैं- जो हुकुम मेरी रानी.
(और आदेशानुसार मेने अपना मुख चाची की योनी के ऊपर रखा और जीभ चोदन प्रारंभ किया, चाची के गर्म लाल मांस के कारण मेरी जीभ भी बहुत गर्म हो गयी. मैं चाची की चूत को जीभ से रगड़ रगड़ कर चोदे जा रहा था,
चाची भी सिसकारियां भरने लगी और मेरी जीभ इतनी लंबी थी की चाची की बच्चादानी से स्पर्श हो रही थी और चाची भी पागल हुए जा रही थी. यह सब कुकर्म चाचा लेटे लेटे देखे जा रहे थे और उनकी आँखों में आंसू थे)
चाची- अह्ह्ह्हह्ह.. उम्ममम्मम्म.. भतीजे, ऐसे ही, अह्ह्ह्हह्ह.. उईईईई.. गयीईईई… मैं उहुहुहुहुहु.. मेरा राजा भतीजा.. मैं गाईय्य्य्य्य.. उर्रर्रर्रर्रर्र.. मैं झड़ने वाली हूँ मेरे लाल, अह्ह्हह्ह्ह्ह.. मैं एआईईईई.. चोद चोद भदद.. ययययययय..
(और कामुकता से भरी आहें भरते हुए, चारमोतकर्ष पर पहुँच कर चाची अपनी चूत से नमकीन पानी का फव्वारा मेरे मुह पर छोड़ देती है और मेरे मुह को कस कर अपनी चूत पर चिपका देती है)
चाची- अह्ह्ह्हह्ह.. अह्ह्ह्हह्ह.. मेरे लाल उयीईईई.. हाय दय्या अह्ह्हह्ह्ह्ह.. क्या मस्त जीभचोदन करता है रे तू, गहराई नापी या नही?
मैं- चाची गहराई भली भांति नाप दी है, अब मेरा सपोला हिचकोले मार रहा है, उसे बेसब्री से बिल में घुसने का इंतज़ार है.
चाची- तो देर किस बात की मेरे राजा, आज ग्रह प्रवेश कर दे.
(और लाजवंती अपनी नाईटी अपने बदन से अलग कर देती है, और जीवन में पहली बार मेने चाची के गोरे बड़े विशालकाय स्तनों को देखा था और उन्हें देखकर मैं पागल हो गया,
इतने गोरे, सुडौल बूब्स जिनमे सुर्ख काले रंग के खड़े निप्पल मेरे लण्ड की नसें फाड़ने को बेकाबू थे, मैं चाची के उरोजों पर झपट गया और निप्पल चूसने लगा और बूब्स कस कस कर दबाने लगा, चाची को भी मस्ती चढ़ गयी)
चाची- चूस चूस, मेरे भतीजे, अह्ह्हह्ह्ह्ह.. उयीईईई.. माँ अह्ह्हह्ह्ह्ह.. दूध पी जा पूरा हरामी..
मैं- अह्ह्ह्ह्ह्ह.. लाजवंती, भेन की लॉड़ी, रंडी, इतने बड़े पहाड़ कहाँ छुपा कर रखे थे माँ की लॉड़ी?
चाची- अह्ह्ह्हह्ह.. गाली देता है हरआआआमी साले, उयीईईई.. रगड़ दिए आज तो तूने मेरे स्तन भेंचो.
मैं- अभी तो सपोला भी जायेगा अंदर साली.
चाची- तो जल्दी डाल मादरचोद, अह्ह्ह्ह.. बहस काहे कर रहा है लण्ड..
(इतना सुनते ही मेने अपना लण्ड, चमड़े के अंदर फिट किया और जोरदार धक्का लगाकर चोदन क्रीड़ा आरम्भ करी और फिर शुरुआत हुई धक्के पर धक्के की, आक्रोश और ज्वाला से भरा मेरा सपोला अपनी ही चाची के बिल की यात्रा कर रहा था.
चाची भी एक धर्मपत्नी जैसा मेरा साथ दे रही थी, अपने दोनों पैरों को मेरी पीठ से बांधें, होठ से होठ मिलाये हुए, कामाग्नि में डूबी चाची मेरे बालों को खींचते हये चुदाई का आनंद ले रही थी.
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