Sonia, Meri Sexy Saali Sahiba – Part 1

Deep punjabi 2016-08-17 Comments

लेकिन मैं नही माना, मेने उसे अपने साथ ही बैठकर खाना खाने का बोला

वो बोली, जीजू कैसी बात करते हो आप?

घर पे बाबू जी है माँ और दीदी भी आने वाली है। कोई आ गया तो कोई नई मुश्किल खड़ी हो जायेगी। लेकिन मेने भी ज़िद से दो तीन रोटी के निवाले उसके मुँह में डाल दिए। जिसको वह ना ना करते खा गयी और बोली ,”जीजू आपके हाथ से खाना खाकर मज़ा आ गया।
बड़ी किस्मत वाली है किरण दीदी,

जिसको आप मिले हो ।

मैं  – क्यों और खाओगे क्या ?

वो थोडा दायें बाये देखकर बोली,” जल्दी से खिला दो जीजू, उनके आने का वक़्त हो गया है।

मेने अपनी बची हुई रोटी अपने हाथ से उसको खिला दी और तब तक पास पडे डिब्बे से रोटी निकालकर खिलाता रहा जब तक उसकी भूख मिट न गयी।

अब हम दोनों खाना खाकर हाथ मुह धोकर हमारे वाले कमरे में आकर बैठ गए। मैं बैड पर लेट गया और सोनिया पास पड़ी कुर्सी पे बैठ गयी।
मेने बात शुरू करते हुए पूछा,” अब बोलो क्या हुआ ?

क्योंके अब न तो किरण पास है और न आपके पति और माँ बापू।

पहले तो सोनिया ऐसे जताती रही जेसे कुछ हुआ ही नही है और बोली कुछ नही जीजू बस ऐसे ही कल मन भर आया था ।

मैं – ज्यादा पहेलिया न बुझाओ बोलो क्या बात है?

मेरे ज़ोर देने पे फेर सोनिया फेर फिसल गयी और रोने लगी और बोली,” अब आपसे कुछ नही छिपाउंगी पर एक शर्त है मेरे बताने से पहले ?

मैं – क्या शरत है बोलो ?

सोनिया –शरत ये के मेरी कहानी सुनने के बाद मेरी जितनी हो सकी मदद करोगे और इसका किसी को भी सिवाए हम दोनों के पता नही चलने दोगे। बोलो मंजूर है क्या आपको ?

उसकी बात सुनकर मैं असमंजस में पड गया और मन में सोचने लगा ऐसी क्या मदद हो सकती है जो मैं कर सकता हूँ। इसी उलझनतानी में ही बिन दिमाग से काम लिए बोल दिया,” हाँ साली साहिबा मंजूर है मुझे तुम्हारी हर शरत्।

वो कुर्सी से उठी और बाहर चली गयी और 5 मिनट बाद कमरे में वापिस आ गयी और बोली, जीजू गली वाला दरवाजा खुला रह गया था। वो बन्द करने गई थी, कल भी सुबह दीदी एक दम से ऊपर आ गयी थी।

मैं – हाँ अब बोलो क्या बात है ?

वो बोली,’  पहले ये देखो (अपने पर्स से एक लैटर जो शयद किसी डॉक्टर के क्लीनक का था, मुझे पकड़ते हुए बोली)

मैं – क्या है यह सोनिया ये ?

रानी – खुद ही देखलो जीजू आप ?

मेने उस से पकड़ कर वो लैटर पढ़ना शुरू किया।

जिसमे लिखा था के उसके पति राज के वीर्य में शुक्राणु बिलकुल निल है मतलब के ना के बराबर है।

जिसे पढकर अब कुछ कुछ बात मेरी समझ में आ रही थी।

मेने लैटर को पढ़कर उसकी तरफ देखा तो वो रो रही थी।

मेने उसे हौंसला दिया के देखो सोनिया आज के ज़माने में साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है। ये प्रॉब्लम तो कुछ भी नही है। इतनी दवाइया बनी चुकी है भयंकर से भयंकर रोगों के लिए।

वो बोली,” हाँ जानती हूँ जीजू, पर ये जब से दवाई खाने लगे है तब से इनकी रिपोर्ट भी दिन ब दिन डाउन होती जा रही है।

मैं – क्या मतलब?

रानी – मतलब के दवाई का कोई असर नही हो रहा इनपे, कई डॉक्टर्स भी बदल कर देख लिए हमने। इधर माँ रोज़ाना पूछती है,

सोनिया बेटी जल्द से नाती का मुँह दिखादे। कही यह न हो के मैं इसी रीझ को दिल में लेकर ही पहले मर जाऊ।

इधर कम से कम लाख रुपये के लगभग इलाज़ पे खर्चा हो गया है पर फर्क एक रूपये का भी नही पड़ा।

इन्होंने तो हमे बच्चा गोद लेने की भी सलाह दी है पर मेरा दिल नही मान रहा, अब आप ही बताओ क्या करु मैं जीजू?

मैं — सही में बात तो बहुत गम्भीर है सोनिया आपकी, पर हर बात का कोई न कोई तो हल होता है न, सो इसका भी मिल जायेगा। फिक्र न करो भगवान सब ठीक कर देंगे।

शाम हो चुकी थी तभी दरवाजा खटकने की आवाज़ आई। सोनिया ने अपना चेहरा साफ किया और भाग कर दरवाजा खोलने चली गयी। अब सासु माँ और किरण बाज़ार से वापिस आ गए थे। उन्होंने थोडा आराम किया और शाम के खाने की तैयारी करने लगे। अगले दिन हमने अपने घर वापस आना था, के तभी राज का आफिस से फोन आया के उसकी माँ बहुत बीमार है, जिसकी वजह से उसको शहर के हॉस्पिटल में दाखिल करवाना है।

सो एक दो दिन आप और रुक जाओ। हमे उनकी मज़बूरी समझनी पड़ी और हम कुछ दिन और वहाँ रुक गए।
करीब एक घण्टे बाद ऑफिस से छूटी लेकर राज कार लेकर घर आया और आते ही बोला,” माँ और सोनिया आप दोनों तैयार हो जाओ, अस्पताल जाना है।

सोनिया और सासु माँ ने उसके आदेश का पालन किया और कार में ही बैठकर उसके साथ चली गई। अब घर पे मैं, किरण और ससुर जी तीनो रह गए। ससुर जी खाना खाकर अपने कमरे में सोने चले गए।

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