Jindagi Ki Kahani – Part I
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Jindagi Ki Kahani – Part I
सुबह 9 बजे से शाम के 5 बजे तक.. रोज की यही दिनचर्या थी रवि को बीच में सिर्फ़ कभी कबार एक आध घंटे का ब्रेक मिल जया करता था। पहले लेक्चर्स फिर प्रॅक्टिकल, और रोज प्रॅक्टिकल 3 घंटे का होता था वो भी बाद में रखा जाता ताकि क्लास बंकिंग ना हो। ये कॉलेज का आखरी साल था और रवि का सब्जेक्ट भी केमिस्ट्री था।
अजय, रवि, राजेश, असलम.. इन चार दोस्तों का गुट था और ये चारों एक ही क्लास कहो या एअर कहो में थे। और इनके साथ थी कॉलेज की 4 सबसे खूबसूरत हसीनाएँ.. सही सोच रहे हो.. इनकी गर्ल फ्रेंड्स।
अब ऐसा तो नही था की केमिस्ट्री डिपार्टमेंट में खूबसूरत लड़कियों की कमी थी.. पर इन चारों का क्या करें.. जब दिल किसी पे आता है तो पहले पूछता थोड़े ही है।
अजय के साथ थी कामिनी.. वो भी अपने आखरी साल में थी और हिस्टरी कर रही थी। रवि के साथ थी माधवी वो इंग्लीश कर रही थी। राजेश के साथ थी सोमया.. कॉलेज की ब्यूटी क्वीन.. जो कॉमर्स कर रही थी। और हमारे असलम के साथ थी रुखसाना जो हिन्दी कर रही थी।
इन सब की मुलाकात कॉलेज के दूसरे साल में हुई जब कॉलेज का फेस्टिवल हुआ। ये चारों लड़के एक दूसरे के दोस्त होते हुए भी एक दूसरे से पदाई में बहुत कॉंपीट करते थे.. राजेश हमेशा नो। 1 ही रहता था और बाकी 3 हर टेस्ट में उपर नीचे होते रहते थे। कॉलेज के पहले दो साल कुछ फ्री से होते हैं तो इनके पास भी फ्री टाइम होता था
कॉलेज की दूसरी गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए इसलिए जब कॉलेज के दूसरे साल फेस्टिवल हुआ तो इंचरों ने भी अलग अलग गतिविधि में हिस्सा लिया और बस हो गयी इनकी टक्कर दिल पेग हट करने वाली हसीना के साथ और वक़्त गुज़रते गुज़रते कॉलेज का दूसरा साल ख़तम हुआ और इनकी दोस्ती अपनी माशुकाओं के साथ गहरी होती चली गयी।
ये चारों लड़कियाँ खूबसूरत होने के साथ साथ दिमाग़ की भी बहुत तेज थी.. और अपने सब्जेक्ट में अवाल नंबर पे रहती थी.. यानी ये भी कम पदाकू नही थी।
जब से कॉलेज का तीसरा साल शुरू हुआ.. चारों लड़के बहुत बिज़ी हो गये और मुश्किल से ये सिर्फ़ इतवार को ही मिल पाते अपनी गर्ल फ्रेंड्स से। कहाँ रोज शाम की चुहलबाजी.. एक दूसरे की आँखों में आँखें डालना और जाने कितनी देर शाम को कॉलेज की कॅंटीन या ग्राउंड में बैठना.. कहाँ महीने में सिर्फ़ दो इतवार को ही मिल पाना।
कॉलेज का तीसरा साल शुरू हुए आज टीन महीने पूरे हो गये थे आज चारों दोस्त अपनी अपनी गर्ल फ्रेंड्स के साथ घूमने गये हुए थे।
असलम और रुखसाना जायदातर बुद्धा गार्डेन में ही जाते थे क्यूंकी ये जगह दोनो के घर के पास पड़ती थी।
झाड़ियों में जहाँ देखो वहाँ कोई ना कोई जोड़ा बेता हुआ अपने आप में मस्त था। ये दोनो भी पार्क के एक कोने में एक झड़ी के पीछे बैठे अपनी बातों में मशगूल थे।
रुखसाना : असलम तुमने घर बात की हमारे बारे में।
असलम : यार पिटवाना है क्या, अब्बा खाल उधेड़ के रख देंगे, अभी पड़ाई तो पूरी हो जाने दो, जब नोकरी लगेगी तब ही तो बात कर पाउँगा।
रुखसाना : तुम स्मझ क्यूँ नही रहे.. मेरे अब्बा ने लड़के देखने शुरू कर दिए हैं.. वो चाहते हैं की कॉलेज ख़तम होते ही मेरी शादी हो जाए।
असलम : ओह.. पर तुम्हारा करियर.. आयेज नही पड़ोगी क्या.. इतनी जल्दी भी क्या पद गयी उनको तुम्हारी शादी की।
रुखसाना : पापा की पीछे मों पड़ी हुई हैं.. कहती हैं लड़की सयानी हो गयी है अब जल्दी शादी करो.. वो साइमा का किस्सा तुम्हें बताया तन आ.. तब से मों को दर लगता है की कहीं मैं भी ना बिगड़ जौन।
असलम : अब बिगड़ तो तुम हो ही चुकी हो (मुस्कुराते हुए असलम ने रुखसाना के लबों पे अपने लब रख दिए)
रुकसाना का मूड खराब था वो फट से अलग हो गयी।
‘अफ तुम्हें तो बस एक ही काम सूझता है.. यहाँ मेरी जान पे बनी पड़ी है’
असलम भी उदास सा हो गया.. उसे कोई रास्ता नही सूज रहा था इस समस्या का हाल निकालने के लिए।
असलम अपना चेहरा लटकाए सोचों में डूब गया।
‘बस यूँ ही चेहरा लटका के बैठे रहो.. जब मेरी रुखसती हो जाएगी.. तब हाथ मलते रहोगे’
रुखसाना से दूर होने की बात असलम सपने में भी नही सोच सकता था.. उसका दिल रो पड़ा.. कैसे अपने बाप से बात करे.. बात करना तो दूर इस मामले को लेकर उनके सामने जाने से ही उसकी पेंट गीली हो जाती आगे के मंज़र के बारे में सोचते हुए।
इन चारों में राजेश ही ऐसा था जो कुछ मेच्यूर था और रुखसाना तो दिल से उसे अपना भाई मानती थी.. राजेश भी उसे बिल्कुल एक भाई की तरहा देखता था और हमेशा उसके लिए एक ढाल बना रहता था।
कहने को तो छिड़ के रुखसाना ने असलम को सुना डाला पर खुद ही पचता रही थी.. असलम का उदास चेहरा उसके दिल पे चुर्रियाँ बरसा रहा था। रुखसाना की आँखों से आँसू बह निकले।
ना जाने क्या सोच उसने राजेश को फोन कर डाला।
जिस वक़्त रुखसाना राजेश को फोन मिला रही थी उस वक़्त राजेश लोधी गार्डेन में सोमया की गोध में सर रख के लेता हुआ था। सकूँ से उसकी आँखें बंद थी और सोमया बैठी बस उसके चेहरे को निहार रही थी.. जैसे नज़रों से उसके गालों को चूम रही हो।
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