Khul Gaya Darwaja – Part 3
ऐसा कह कर मंजू ने देव का कुरता पकड़ कर उसे अपनी और खींचा। देव असावधान था और धड़ाम से मंजू के ऊपर जा गिरा। अब मंजू ने उसे अपनी बाहों में लिया और कस के पकड़ा और बोली, “अब तू मुझसे दूर जा कर के तो दिखा। अब तक तो इतना फड़फड़ा रहा था। अब आजा, मेरी प्यास बुझा रे! अब तक जो तू मुझे इतने जोर से अपनी मर्दानगी का विज्ञापन कर रहा था तो उसको दिखा तो सही।”
मंजू ने आगे बढ़ कर देव के पाजामे का नाडा खोल दिया और देखते ही देखते देव का पजामा निचे गिर पड़ा। देव अपने निक्कर में अजीब सा लग रहा था। मंजू ने अपना हाथ देव के निक्कर पर उसकी टांगों के बिच में फिराया। वह उसके लण्ड का जैसे मुआयना कर रही थी। मंजू ने देव के निक्कर के ऊपर से ही उसके लण्ड को सहलाना शुरू किया। जरूर उसका हाथ देव ले लण्ड से रिस रही चिकनाहट से चिकना हो गया होगा। मुझे भी देव के लण्ड के फूलने के कारण उसकी निक्कर पर उसके पाँव के बिच बना हुआ तम्बू साफ़ दिखाई दे रहा था। मंजू शायद देव के लण्ड की लम्बाई और मोटाई की पैमाइश कर रही थी। शायद उसके लिए किसी मर्द के लण्ड को छूने और सहलाने का पहला ही मौक़ा था। शायद मंजू देखना चाहती थी की जो लण्ड जल्द ही उसकी चूत में घुसने वाला है वह उसकी चूत को कितना फैलाएगा और उसको कितना मजा देगा।
मंजू के सहलाते ही देखते ही देखते देव का लण्ड फैलता ही जा रहा था। देव के पाँवोँ के बिच का तम्बू बड़ा ही होता जा रहा था। अब तो मुझे भी उसके पाँव के बिच का गीलापन साफ़ नजर आ रहा था। देव के लण्ड की पैमाइश करते ही मंजू की बोलती बंद हो गयी। मंजू शायद यह सोच कर चुप हो गयी की आखिर उसे भी तो देव का लण्ड चाहिए था। उसे भी तो उसके पाँव के बिच जवानी की ललक लगी हुई थी। वह भी तो पिछले कितने हफ़्तों से इस लण्ड के सपने देख रही थी। शायद मंजू ने यह नहीं सोचा होगा की देव का लण्ड उतना बड़ा होगा। जो भी कारण हो। मंजू जो तब तक इतना हंगामा कर रही थी अब जैसे एक अजीब सी तंद्रा में देव के लण्ड का अपने हाथों में अनुभव कर रही थी और मंत्र्मुग्ष जैसी लग रही थी।
जबकि देव की नजरें मंजू के सुगठित दो पके हुए आमके फल सामान स्तनों के मद मस्त आकार को देखने और हाथ दोनों को मसल ने और सहलाने में लगे हुए थे। मंजू के उन्मत्त उरोज की निप्पलेँ आम की डंठल की तरह फूली और कड़क दबवाने और चुसवाने का जैसे बड़ी उत्सुकता पूर्वक इंतजार कर रही थीं। उसकी मदमस्त चूँचियाँ देव के लण्ड पर केहर ढा रही थीं। देव के लिए रुकना तब बड़ा ही मुश्किल हो रहा होगा। तो फिर मंजू का भी तो वैसा ही हाल था। मुझे साफ़ दिख रहा था की मंजू भी देव से चुदवाने के लिए जैसे बाँवरी हो रही थी। अब उसका भी पूरा ध्यान देव के लण्ड पर था।
मंजू ने धीरे से देव के निक्कर के बटनों को अपनी लम्बी उँगलियों से खोला और एकदम देव का लण्ड जैसे एक बड़ा अजगर छेड़ने से अपने बिल में से फुफकार मारते हुए बाहर आता है, वैसे ही देव की निक्कर से निकल कर मंजू के हाथों में फ़ैल गया। देव का फुला हुआ लण्ड मंजू की हथेली में देख कर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मंजू बड़ी मुश्किल से अपनी हथेली में उसे पकड़ पा रही थी। बार बार देव का लण्ड मंजू की हथेली से फिसल कर निचे गिर कर लटक जाता था। मंजू उसे बार बार वापस अपनी छोटी सी हथेली में ले रही थी।
देव का लण्ड देखते ही मंजू को तो जैसे साप सूंघ गया हो ऐसी शकल हो गयी। वह मंत्रमुग्ध होकर चुपचाप वह एकटक लण्ड को ही देख रही थी। देखते ही देखते मंजू ने पलंग से निचे उतर कर अपना सर देव की टांगों के बिच रखा और देव के लण्ड के करीब अपना मुंह ले गयी। कुछ देर तक तो वह देव के लण्ड को एकदम करीब से निहारती रही फिर धीरे से उसने अपनी जीभ लम्बी करके देव के लण्ड के टोपे को चाटना शुरू किया। देव का पूर्व रस देव के लण्ड के टोपे के केंद्र बिंदु से रिस्ता ही जा रहा था। मंजू उसे अपनी जीभ से चाटकर निगलने लगी।
धीरे से फिर मंजू ने अपना मुंह और निकट लिया और देव के लण्ड को अपने मुंह में अपने होठों के बिच ले लिया। धीरे धीरे उसने अपना सर हिलाना शुरू किया और देव के लण्ड के टोपे को पूरी तरह अपने मुंह में लेकर अपने होंठ और जीभ से अंदर बाहर करने लगी और साथ साथ चूसने लगी। देव भी तो अब मंजू के कार्यकलाप से पागल हो रहा था। उसे तो कल्पना भी नहीं थी की ऐसी शेरनी जैसी लगने वाली यह अल्हड लड़की अब उसकी इतनी दीवानी हो जाएगी और एक भीगी बिल्ली की तरह उसके हाथ लग जायेगी ।
अनायास ही देव भी अब अपना पेडू से अपना लण्ड मंजू के मुंह में धक्के देकर अंदर बाहर करते हुए घुसेड़ने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे देव मंजू के मुंह को चोद रहा था। मंजू देव के इतने मोटे लण्ड को अपने मुंहमें पूरी तरह से ले नहीं पा रही थी। फिर भी अपने गालों को फुलाकर वह देव के लण्ड को चूसने लगी।
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