Khul Gaya Darwaja – Part 3
देव से रहा नहीं जा रहा था। देव ने हलके से अपने लण्ड को मंजू के मुंह से निकाला और धीरे से मंजू को बोला, “पगली, आज मुझे तुझे तेरी चूत में चोदना है। मैं अब तुझे मेरे इस लण्ड के लिए ऐसा पागल कर दूंगा की तू अब मेरे पीछे पीछे मुझसे चुदवाने के लिए मिन्नतें करेगी और तब ही मैं तुझे चोदूँगा।
यह सुनते ही जैसे मंजू अपने मूल रूप में आ गयी और बोली, “हट बे लम्पट! यह तो मुझे तुझपे रहम आ गया। सोचा, चलो तू इतना पीछे पड़ा था तो तुझे ही देती हूँ। तू भी क्या याद करेगा। वरना मैं और तुझे मिन्नतें करूँ? अरे एकबार अपनी शकल आयने में तो देख।”
मंजू देव को हड़काने में लगी हुई थी, की देव ने मंजू के घाघरे का नाडा खोल दिया और मंजू को पता भी नहीं चला। जैसे ही मंजू समझी तो खड़ी हुई। मंजू के खड़े होते ही उसका घाघरा निचे गिर पड़ा। मंजू अब सिर्फ एक चड्डी जैसी पैंटी पहनी हुई थी। मंजू को इसकी भनक लगे उसके पहले ही एक झटके में देव ने मंजू की पैंटी को निचे की और खिंच लिया और मंजू पूरी नंगी हो गयी। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
बापरे! मैंने उससे पहले इतनी खूबसूरत कोई जवान नंगी लड़की नहीं देखि थी। (वैसे भी मैंने तब तक और कोई नंगी लड़की नहीं देखि थी। ) नंगी खड़ी हुई मंजू कोई अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। क्या गजब के घुंघराले बालों के गुच्छे और कान पर और नाक पर फैली उसके बालों की लटें! क्या घनी और धनुष के अकार सामान उसकी भौंहें! ऑयहोय! कैसा गज़ब ढ़ा रही थीं उसकी लम्बी पलकें! क्या मदहोश उसकी आँखें! क्या नशीले और कुदरती लाल होंठ जो कटाक्ष पूर्ण मुद्रा में दिख रहे थे! उसकी लम्बी और पतली गर्दन जो निचे से उसके हसीं कन्धों से जुडी हुई थी। क्या जवान कड़क और ग़ज़ब के खूबसूरत उसके मम्मों का आकार! कैसे फूली हुई करारी उस मम्मों पर उद्दंडता से खड़ी हुई निप्पलेँ! क्या ईमान ख़तम करने वाला उसके पेट, कमर और नितम्ब का घुमाव और क्या उसकी हल्केफुल्के बालों वाली उभरी हुई चूत! उसके नितम्ब और उसकी मदहोश करने वाली चूत से निचे उसकी उत्तेजना से थिरकती हुई सुआकार जांघें ऐसी लग रहीथीं जैसे एक बड़ी नदी में से पतली सी दो नदियाँ निकल रही हों!
उस नंगी मूरत को देख मेरा लण्ड भी खड़ा हो गया। और ऐसा खड़ा हो गया की मुझसे रहा ही नहीं जा रहा था।
जब मैं छुपा हुआ इतनी दूर खड़ा हुआ था और फिर भी मेरा यह हाल था; तो सोचो की उस क़ुदरत की अति सुन्दर नग्न मूरत को इतने करीब से देख रहे देव का हाल क्या हुआ होगा? वह तो कोई दक्ष कलाकार की तराशी हुई अद्भुत संगमरमर की उस नग्न मूरत समान खड़ी मंजू को ठगा हुआ देखता ही रहा। उसका लंबा घंट के सामान लण्ड एकदम सावधान पोजीशन में अकड़ा हुआ खड़ा था जिसमें से उसका पूर्व रस रिसता ही जारहा था।
मंजू ने उसका अक्कड़ खड़ा हुआ घंटा अपने हाथों में पकड़ा और उसे धीरे धीरे हिलाती हुई बोली, “अरे फक्कड़, क्या देख रहा है? मैं यहां एक औरत हो कर नंगी खड़ी हूँ और तू साला पहले तो बड़ी डिंग मारता था, की “तुझे चोदुँगा तुझे चोदुँगा” तो अब तुझे क्या साप सूंघ गया है? कुछ न करते हुए बस मुझे नंगी देखकर घूरता ही जा रहा है? घूरता ही जा रहा है? चल कपडे निकाल! तू भी नंगा होकर दिखा। साले मुझे भी तो तुझे नंगा देखना है। देखूं तो सही की कैसा लगता है मेरा मर्दानगी भरा छैला?”
देव जो मंजू की नग्न अंगभँगिमा में खोगया था उस तंद्रा से वापस धरती पर आया। देव ने पाया की उसके सपनों की रानी जिसे सपनों में देखकर मूठ मारते मारते उसकी हालत खराब हो जाती थी, स्वयं वह तब उसके सामने नग्न खड़ी उसे चोदने का आह्वान कर रही थी।
उस सुबह की और उसके पहले की कई महीनों की उसकी मंजू को फ़साने की मेहनत फलीभूत होती हुई नजर आ रही थी। उस नंगी खड़ी हुई औरत का हरेक अंग देव के सपनों में आयी हुई मंजू के हर अंग से कितना मिलता था! देव तो जैसे नंगी खड़ी हुई मंजू का दीवाना ही हो गया। तब उसे उस देवी को कैसे मैं खूब खुश करूँ? यही बात मन में आ रही थी।
अपने लण्ड की बेचैनी की और न ध्यान देते हुए देव जमीं पर घुटनों के बल आधा खड़ा हुआ और उसने बड़े प्यार से मंजू को पलंग पर बिठाया और मंजू के पैरों को चौड़े कर उनके बीचमें अपना सर घुसेड़ा। उसने देखा की मंजू की चुदवाने की उत्तेजना उसकी चूत में से बूँदें बन कर टपक रही थीं। मंजू की उत्तेजना से भरा उसका पूर्व रस उसकी चूत में से निकल कर उस की जाँघों पर पतली सी धारा बनकर बह रहा था।
देवको उसका आस्वादन करना था। देव ने अपनी जीभ लम्बाई और मंजू की चूत की दरार में घुसादी। देव की जीभ जब मंजू की संवेदनशील त्वचा को चाटने और कुरेदने लगी तो मंजू मारे उत्तेजना से पगला सी गयी। एक अकल्पनीय सिहरन मंजू के बदनमें दौड़ रही थी। उसकी चूत की अंदरूनी त्वचा ऐसे चटक रही थी जैसा मंजू ने पहले कभी अनुभव नहीं किया था।
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