Sadak Banane Wali Ek Ladki

Deep punjabi 2016-08-23 Comments

वो – (थोडा शरमाते हुए) – दरअसल मेरी शादी हो चुकी है साब जी,  6 महीने पहले।

क्या ?? उसकी बात सुनकर मैं चौंक गया।

मेरे चौंकने की वजह यह भी थी के शरीर की बनावट के हिसाब से कुंवारी ही लग रही थी।

वो हंसकर बोली – हाँ साब जी, हमारे समाज में बाल विवाह का रिवाज़ है। मतलब जब हम लडकिया या लड़के 2 या 3 साल के होते है। तब से ही हमारी सगाई तय कर दी जाती है और जब हम 18 तक पहुंचते है। तब तक दूल्हा दुल्हन बन चुके होते है।

मैं – (थोड़ा हैरान होकर) – मतलब ये लेबर आपके सुसराल वालो की है..?

वो – हांजी सारी लेबर में मेरे जेठ-जेठानी, ननद-नन्दोई, देवर-देवरानी और भी बहुत सारे रिश्तेदार है।

मैं – आपका पति क्या करता है सुमरी ?

वो – जी वो भी हमारे साथ लेबर में ही है।

मैं – एक बात बोलू सुमरी?

वो – हांजी बोलिए।

मैं – आप बहुत खूबसूरत हो सच में कसम से !

वो मेरी बात सुनकर वो एकदम से शर्मा गयी और उसने अपना चेहरा अपनी हथेलियो में छूपा लिया।

मैं उठकर उसके आगे खड़ा हो गया और उसके हाथ पकड़कर उसके चेहरे से हटाने लगा।

वो – आप ऐसी बाते न करो साब जी, मेरे को लाज आ रही है।

मैं उसकी लाज शर्म तोडना चाह रहा था।

उसने हाथ तो अपने चेहरे से हटा लिए पर मुह दूसरी तरफ ही किया हुआ था और उसकी आँखे बन्द थी।

मेने अपने हाथ से उसकी ठोड़ी को अपनी तरफ सरकाया.. उसकी आँखे अभी भी बन्द थी। जैसे के आत्मसमर्पण कर रही हो। मेने न चाहते हुए भी उसके पतले हल्के गुलाबी होंठो पे किस कर दिया।

जिस से उसकी बन्द आँखे खुल गयी और वो घबराई सी आवाज़ में बोली – नही साब जी, ये ठीक नही है, मुझे जाने दो छोडो मुझे बाकी लेबर वाले मेरी राह देख रहे होंगे।

मेने उसे छोड़ दिया और वो ठंडा पानी लेकर अपनी लेबर में चली गयी। मैं  डर गया के कही सुमरी जाकर अपने माँ बापू को न बोल दे।

इसी उलझन-तानी में उलझे हुए पता नही लगा कब 2 घण्टे बीत गए।

एक बार फेर दरवाजा खटकने की आवाज़ आई। मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा के कही उसके माँ बापू न हो और मुझसे झगड़ा करने न आये हो, मेने लकड़ी के दरवाजे में एक मोरी में से देखा के सुमरी अकेली ही खड़ी दरवाजा खटका रही है।

मेने चैन की साँस ली और दरवाजा खोल दिया।

मैं – हाँ सुमरी अब क्या चाहिए आपको ?

वो इस बार पहले की तरह डरी नही और खुद ही मेरे कमरे में आकर बैठ गयी और बोली – साब जी, मेरा चाय पीने को दिल कर रहा है। हमारी लेबर ने अभी एक घण्टे बाद चाय बनानी है। तब तक मुझसे रहा नही जायेगा। अगर आप बुरा न मानो तो मैं यहाँ चाय बनाकर पी सकती हूँ क्या ?

मैं – हाँ सुमरी क्यों नही, इसे अपना ही घर समझो ?

वो शरारत भरे अंदाज़ में बोली – कौन सा मायके वाला या..?

मैं – (उसके दिल की बात बूझकर मेने भी चौंके पे छिक्का मारा) – हाँ इसे अपने पति का घर ही समझो।

हम दोनों हंसने लगे। वो इस बार कुछ ज्यादा हो खुल कर बाते कर रही थी। मेने उसे रसोई में पड़े चाय, चीनी, दूध के बारे में बताया और वो चाय बनाने लगी।

हमारी रसोई में पंखा नही है। जिसकी वजह से वो पसीने से भीग रही थी और वो बार बार चुनरी से अपने मम्मो को चोली के ऊपर से ही साफ कर रही थी।

उसकी ज़ुलफे बार बार उसकी आँखों पे आ रही थी। मेने दिल से डर निकाल कर अपने हाथ से उसकी आँखों पे आई हुई ज़ुल्फ़ों को हटाकर उसके कान पे टांग दिया। जिससे उसने हल्की सी स्माइल दी। मेने उसे दो घण्टे पहले हुई घटना के बारे में बात की और पूछा..

सुमरी सुबह जो भी हुआ उसके लिए तह दिल से माफ़ी चाहता हूँ। आपको शायद बुरा लगा हो, पर मैं भी क्या करता, आप हो ही इतने खूबसूरत के आपकी खूबसूरती में मद्होश होकर पता नही चला कब आपके नरम गुलाब की पत्तियो जेसे होंठो को चूम लिया। सुमरी हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।

उसने मेरी तरफ देखा और बोली – साब जी, आप तो बिलकुल बुध्धू हो। यदि मेने बुरा माना होता तो आपके घर, आपके पास दुबारा आती क्या?

मैं – हाँ सुमरी ये तो है इतना ख्याल तो मेरे दिमाग में ही नही आया।

वो – मैं तो बल्कि आपका शुक्रिया अदा करती हूँ। आपको खूबसूरत तो लगी मैं। मेरा पति कभी मेरी तारीफ नही करता। बस सारा दिन काम काम और बस काम। मेरे लिए तो जरा सा टाइम भी नही है उनके पास। (उसने अपनी परेशानी बताई)

उसकी बुरा न मानने वाली बात सुनकर मेरे दिल से हज़ारो टन का बोझ उत्तर गया। तब तक चाय भी बन चुकी थी। मेने उसे चाय दो कपों में डालकर अपने कमरे में आने का बोलकर उससे पहले अपने कमरे में चला गया।

उसके तरफ से थोड़ा ग्रीन सिग्नल मिलने से मन ही मन में खुश भी हो रहा था।

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