Vijay Aur Uski Malkin Nirmla

Deep punjabi 2016-08-30 Comments

विजय – हांजी !

मालकिन – तुम बाहर बैठो मैं नहाकर आती हूँ और सारी बात विस्तार से समझाती हूँ।

विजय बाहर आकर बैठ गया।

करीब एक घण्टा उडीकने के बाद मालकिन बाहर आई और बोली – विजय गाड़ी निकालो और हमने अपनी दूसरे शहर वाली हवेली में जाना है।

विजय हुक्म मानकर गाड़ी में बिठाकर मालकिन को दूसरे शहर वाली हवेली ले गया। वहां जाकर देखा के वहां कोई भी नही है। दरवाजे पे बड़ा सा ताला लगा हुआ था।

मालकिन ने उसे दरवाजे की चाबी दी और दरवाजा खोलने को बोला।

विजय ने दरवाजा खोल दिया और गाड़ी अंदर करके दरवाजा अंदर से बन्द कर दिया। गाड़ी अंदर तक ले गया, दोनों गाड़ी से उतरे और वहां एक कमरे में पडे सोफे पे मालिकन बैठ गयी और विजय खड़ा रहा। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।

मालकिन – तुम भी बैठो विजय।

विजय – भला, मैं आपके साथ कैसे बैठ सकता हूँ, मालकिन?

मालिकन – क़र्ज़ माफ़ कराना है तो बैठना हो पड़ेगा न !

कुछ सोचकर विजय मालकिन से थोड़ी दूर उसी सोफे पे बैठ गया।

मालकिन – अब सीधा मुद्दे की बात पे आते है।

विजय – जी बोलो।

मालकिन – तुम तो जानते हो तुम्हारे मालक मुझे औलाद का सुख नही दे सकते।

विजय – हाँ जी तो?

मालकिन – तो मैं चाहती हूँ तुम मेरे बच्चे के पिता बनो। मैं तुमसे वादा करती हूँ ये बात हम दोनों में रहेगी।

मालकिन की ये बात सुनकर विजय भौचंका रह गया। उसे काटो तो खून नही, क्योंके उसमे ऐसा कभी सपने में भी नही सोचा था।

मालकिन उसे झंजोड़ते हुए – कहाँ खो गए विजय?

विजय –  कहीं नही मालकिन, आपकी बात ने सोचने पे मज़बूर कर दिया। परन्तु ऐसा कैसे हो सकता है? मेने आपके बारे में ऐसा सपने में भी सोचा नही है।

मालकिन – देखो विजय तुम भी जानते हो जिस कर्जे को उतारने में तुम्हारे दादा पडदादा नाकाम रहे, तुम अकेले उसे कैसे उतार पाओगे?

विजय – हाँ मालकिन ये तो है।

मालकिन – तो तुम्हारे सिर का बोझ भी उत्तर जायेगा और हमे अपने खानदान को रोशन करने वाला चिराग मिल जायेगा। पर इसमें मेरी कुछ शर्ते हैं। जितना टाइम मैं चाहूँगी, तुम्हे यहाँ रहना पड़ेगा। हमारे घर ऐसे ही गुलाम बनकर, क़र्ज़ माफ़ है पर काम यही करोगे। उसकी तुम्हे हर महीने तनख्वाह भी दूंगी।

विजय – ठीक है जी।

मालकिन – जितने दिन आपके मालिक नही आते आप मेरे साथ ही रात को सोओगे। मंजूर है।

विजय – हाँ जी मन्ज़ूर है अब न कहने की कोई गुंजाइश भी नही है।

मालकिन – तो ये नेक काम आज से मतलब अभी से शुरू हो जाना चाहिए।

विजय – जो हुक्म मेरे मालिकन।

मालकिन – एक बात और जब मेरे साथ हो मालकिन नही कहना नाम लो निर्मला देवी।

विजय – ठीक है निर्मला देवी।

और दोनों हंसने लगे..

विजय ने निर्मला को गोद में उठाया और निर्मला के बताएं कमरे की तरफ चल दिया। अंदर पहुंच कर उसको बैड पर लिटाया और अपनी सारी शर्म, हया उतारकर उसके ऊपर आकर उसको चूमने लगा। इधर निर्मला भी अपनी हम उम्र के मर्द के स्पर्श को पाकर धन्य हो गयी। उसकी रग-रग ने काम वीना बजने लगी। मानो अंधे को आँखों की जोड़ी मिल गयी हो।

मालकिन की उम्र 25 साल, रंग गोरा, गदराया बदन, खुले बाल, साड़ी में लिपटी हुई एक अप्सरा लगती थी। माँ बाप छोटे ज़मीदार होने की वजह से इनके हिसाब का कोई रिश्ता नही मिला। तो राजेन्दर सिंह (35 साल) से शादी कर दी गयी।

करीब 10 मिनट निर्मला के होंठो का रसपान करने के बाद विजय भी थोड़ा सरूर में आ गया और निर्मला को उठाकर उसके सारे कपड़े एक एक करके निकाल दिए।

निर्मला भी एक एक करके विजय के सारे कपड़े निकालने लगी। जब दोनों एकदम नंगे हो गए तो एक दूजे को बाँहो में लेकर बैड पे लेट गए और एक दूजे को चूमने चाटने लगे।

फिर निर्मला को पीठ के बल लिटाकर विजय उसके ऊपर आके उसके माथे पे किस करने लगा। जिससे निर्मला के शरीर में 440 वाल्ट का करन्ट दौड़ने लगा और आँखे बन्द करके आह्हह्हह्हह्ह की आवाज़ निकालने लगी। आज पहली बार कोई अपनी उम्र का मर्द उसकी जवानी से खेल रहा था।

अब थोडा कान की तरफ झुककर कान की पेपड़ी को जीभ से मुह में लेकर चूसने लगा। जिस से निर्मला मज़े के सागर में गोते लगाने लगी। उसकी सिसकिया बढ़ती ही जा रही थी।

अब विजय निर्मला के निचले होंठ को अपने होंठो में लेकर उसका रसपान करने लगा, निर्मल भी उसका साथ दे रही थी। अब धीरे धीरे विजय निचे को सरकता जा रहा था। अब विजय ने निर्मला का दायना मम्मा अपने मुह में लिया और बायीं तरफ वाले मम्मे को हाथ में लेकर भिचने लगा। जिस से मानो निर्मला के शरीर में चींटिया दौड़ने लगी और वो अपने हाथो से विजय का सर पकड़कर अपने मम्मे पे दबाव बनाने लगी..

निर्मला – और चूसो, विजय खा जाओ इन आमो को तुम्हारे लिए ही सम्भालकर रखे है – जैसी बहकी बहकी बाते करने लगी।

विजय अपनी मस्ती में आगे बढ़ता जा रहा था और बार बार बदल बदल कर मम्मे चूस और उसने हल्की हल्की चक्की भी काट रहा था। जिस से कई बार निर्मल के मुह से ज़ोर से चीख निकल जाती थी।

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