Bhoot To Chala Gaya – Part 12

iloveall 2017-05-24 Comments

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मैं स्वयं अपने इस उच्चारण से आश्चर्य चकित हो रही थी। मैंने इस तरह इतनी गन्दी बातें मेरे पति राज से भी नहीं की थी। और मैं थी की उस वक्त एक गैर मर्द से एक कामुकता की भूखी छिनाल की तरह बरत रही थी। फ्री हिंदी सेक्स स्टोरी हिंदी चुदाई कहानी

समीर अपने बदन को संतुलित रखते हुए और मुझ पर थोड़ा सा भी वजन न डालते हुए अपने लण्ड को मेरी चूत की पंखुड़ियों के करीब लाये। मेरी दोनों टाँगें उन्होंने उनके कंधें पर रखी। उनका खड़ा लंबा लण्ड मेंरी चूत के द्वार पर खड़ा इंतजार कर रहा था।

उस रात पहली बार मैं सकपकायी। मेरी साँसें यह सोच कर रुक गयी की अब क्या होगा? मैं एक पगली की तरह चाहती थी की समीर मुझे खूब चोदे। पर जब वक्त आया तब मैं डर गयी और मेरे मन में उस समय सैंकड़ो विचार बिजली की चमकार की तरह आये और चले गए।

सबसे बड़ी चिंता तो यह थी की समीर का इतना मोटा लण्ड मेरी इतनी छोटी और नाजुक चूत में घुसेगा कैसे? हालाँकि राज का लण्ड समीर के लण्ड से काफी छोटा था तब भी मैं मेरे पति को उसे धीरे धीरे घुसेड़ने के लिए कहती रहती थी। समीर का तो काफी मोटा और लंबा था। वह तो मेरी चूत को फाड् ही देगा।

पर मैं जानती थी की तब यह सब सोचने का वक्त गुजर चुका था। अब ना तो समीर मुझे छोड़ेगा और न ही मैं समीर से चुदवाये बिना रहूंगी। हाँ, मैंने विज्ञान में पढ़ा था की स्त्री की चूत की नाली एकदम लचीली होती है। वह समय के अनुसार छोटी या चौड़ी हो जाती है। तभी तो वह शिशु को जनम दे पाती है। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

मैं जानती थी की मेरी चूत चौड़ी तो हो जायेगी पर उससे मुझे काफी दर्द भी होगा और मुझे उसके लिए तैयार रहना पडेगा। मैंने समीर के लण्ड को मेरी उंगलितों में पकड़ा और हलके से मेरी चूत की पंखुड़ियों पर रगड़ा। मेरी चूत में से तो रस की नदियाँ बह रही थी। समीर का लण्ड भी तो चिकनाहट से पूरा सराबोर था। मैंने हलके से समीर से कहा, “थोड़ा धीरेसे सम्हलके डालना। मुझे ज्यादा दर्द न हो। ”
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मैंने एक हाथ से समीरके लण्ड को पकड़ा और उसके लण्ड केचौड़े और फुले हुए सिंघोड़ा के फल जैसे ऊपरी हिस्से को मेरी चूत में थोड़ा सा घुसेड़ा और मेरी कमर को थोड़ा सा ऊपर की और धक्का देकर समीर को इशारा किया की बाकी का काम वह खुद करे।

समीर मेरे इशारे का इंतजार ही कर रहे थे। उन्होंने अपनी कमर को आगे धक्का देकर उनका कडा लण्ड मेरी चूत में थोड़ा सा घुसेड़ा। चिकनाहर की वजह से वह आसानी से थोड़ा अंदर चला गया और मुझे कुछ ज्यादा दर्द महसूस नहीं हुआ। मैंने मेरी आँखों की पलकों से समीर को हंस कर इशारा किया की सब ठीक था।

समीर का पहला धक्का इतना दर्द दायी नहीं था। बल्कि मुझे अनिल के लण्ड का मेरी चूत में प्रवेश एक अजीबोगरीब रोमांच पैदा कर रहा था। उस वक्त मेरे मनमें कई परस्पर विरोधी भाव आवागमन करने लगे। मैंने महसूस किया की मैं एक पतिव्रता स्त्री धर्म का भंग कर चुकी थी। उस रात से मैं एक स्वछन्द , लम्पट और पर पुरुष संभोगिनी स्त्री बन चुकी थी। पर इसमें एक मात्र मैं ही दोषी नहीं थी।

मुझसे कहीं ज्यादा मेरी पति राज इसके लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने बार बार मुझे समीर की और आकर्षित होने के लिए प्रोत्साहित किया था। पर मैं तब यह सब सोचने की स्थिति में नहीं थी। उस समय मेरा एक मात्र ध्येय था की मैं वह चरम आनंद का अनुभव करूँ जो एक लम्बे मोटे लण्ड वाले पर पुरुष के साथ उच्छृंखल सम्भोग करने से एक शादी शुदा पत्नी को प्राप्त होता है।

मैं अब रुकने वाली नहीं थी। मैं ने एक और धक्का दिया। समीर ने अपना लण्ड थोड़ा और घुसेड़ा। मुझे मेरी चूत की नाली में असह्य दर्द महसूस हुआ। मैंने अपने होंठ दबाये और आँखें बंद करके उस दर्द को सहने के लिए मानसिक रूप से तैयार होने लगी। समीर ने एक धक्का और दिया और उसका लोहे की छड़ जैसा लण्ड मेरी चूत की आधी गहराई तक घुस गया। मैं दर्द के मारे कराहने लगी। पर उस दर्द में भी एक अजीब सा अपूर्व अत्युत्तम आनंद महसूस हुआ।

जैसे समीर ने मेरी कराहटें सुनी तो वह थम गया। उसके थम जाने से मुझे कुछ राहत तो जरूर मिली पर मुझे अब रुकना नहीं था। मेरी चूत की नाली तब पूरी तरह से खींची हुई थी। समीर का लण्ड मेरी नाली में काफी वजन दार महसूस हो रहा था।

उसके लण्ड का मेरी वजाइनल दीवार से घिसना मुझे आल्हादित कर रहा था। मैंने समीर को इशारा किया की वह रुके नहीं। जैसे जैसे समीर का मोटा और लंबा कड़ा लण्ड मेरी चूत की गेहराईंयों में घुसता जारहा था, मेरा दर्द और साथ साथ में मेरी उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी।

मैंने समीर को रोकना ठीक नहीं समझा। बस मैंने इतना कहा, “समीर जरा धीरेसे प्लीज?”

समीर चेहरे पर मेरे कराहने के कारण थोड़ी चिंता के भाव दिख रहे थे। मैंने उसे कहा, ‘धीरेसे करो, पर चालु रखो। थोड़ा दर्द तो होगा ही।“

मैं जानती थी की समीर मुझे देर तक और पूरी ताकत से चोदना चाहते थे। मैं भी तो समीर से चुदवाने के लिए बाँवरी हुई पड़ी थी। मैंने समीर का हाथ पकड़ा और उसे चालु रहने के लिए प्रोत्साहित किया। समीर ने एक धक्का लगाया और मेरी चूत की नाली में फिरसे उसका आधा लंड घुसेड़ दिया। तब पहले जैसा दर्द महसूस नहीं हुआ। समीर रुक गया और मेरी और देखने लगा। मैंने मुस्करा कर आँखसे ही इशारा कर उसे चालु रखने को कहा।

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