Bhoot To Chala Gaya – Part 9
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मेरे समीर के गोद मैं बैठने के परिणाम तो होने ही थे। मैं महसूस कर रही थी की धीरे धीरे समीर का लण्ड खड़ा हो रहा था और थोड़ी ही देर में मैंने मेरी गांड पर उसे ठोकर मारते महसूस किया। मैंने एक पतला सा गाउन ही पहना था। उस में से समीर का मोटा और कड़ा लण्ड मेरी गांड की दरार में जैसे घुस रहा था। ठीक से कन्धों को दबाने किए लिए मैंने मेरे गाउन के ऊपर के दो बटन खोल दिए थे। अगर ऊपर से झांका जाय तो मेरे दोनों स्तन साफ़ दिख सकते थे। समीर चाहता तो अपने हाथ थोड़े और लम्बे करके मेरे बूब्स को छू सकता था और दबा सकता था। मुझे उसका डर था। पर उसने ऐसा कुछ नहीं किया।
सबसे बड़ी समस्या यह थी की मेरे पॉँव के बिच में से रस झरना शुरू हो गया था। अब अगर मैं समीर की गॉद मैं बैठी रही तो वह पानी उसके पाजामे को भी गिला कर सकता था। इससे यह जाहिर हो जाता की मैं भी समीर के स्पर्श से एकदम गरम हो गयी थी।
समीर के आघोश में रहते हुए, मैं भी उत्तेजित हो रही थी। उनके मांसल हाथ मेरे दोनों कन्धों पर मसाज कर रहे थे, उनकी मर्दाना खुशबु मेरे पॉंव के बिच में अजीब सी मीठी टीस पैदा कर रही थी। उन का खड़ा लण्ड पाजामे के अंदरसे मेरे गाउन को दबाते हुए मेरी गांड की दरार में घुसने की कोशिश कर रहा था। पर समीर का ध्यान उन की हथेलियां और अंगूठे, जो मेरे कांधोंकी हड्डी के निचे की मांस पेशियोँ दबाने में लगे थे उस पर था। मेरा मन हुआ की उनके खड़े लण्ड को पकड़कर उसे महसूस करूँ। पर मैंने अपने आप को काबू में रखा और समीर की गोद से हटते हुए बोली, “अब बहुत ठीक लग रहा है। शुक्रिया।”
कंधा तो ठीक हुआ पर अभी पॉँव में दर्द काफी था। समीर ने मुझे एक पॉँव से दूसरे पॉँव को दबाते हुए देखा तो वह समझ गये की मुझे पाँव में काफी दर्द हो रहा था। समीर ने कहा, “तुम्हें पाँव में सख्त दर्द हो रहा है। लाओ मैं तुम्हारे पाँव दबा दूँ।”
समीर से मेरे पाँव छुआना मुझे ठीक नहीं लगा। मैंने कहा, “नहीं, कोई बात नहीं। मैं ठीक हूँ।”.
समीर ने तब मेरे सिरहाने ठीक किये और मुझे सो जाने के लिए कहा। मैं पलंग पर सिरहाना सर के निचे दबाकर लम्बी हुई। धीरे धीरे धीरे मेरी आँखें गहराने लगीं। मैंने महसूस किया की समीर ने मेरे पाँव से चद्दर उठा कर मुझे ओढ़ाया और खुद मेरे पाँव के पास बैठ गये। मैं थकी हुई थी और गहरी नींद में सो गयी। उस बार न तो मुझे कोई सपना आया न तो मुझे कोई डर लग रहा था। समीर के पास में होने से मैं एकदम आश्वस्त थी।
काफी समय गुजर गया होगा। मेरी आँख धीर से खुली। सुबह के चार बजने में कुछ देर थी। मैं गहरी नींद में चार घंटे सो चुकी थी। रात का प्रहर समाप्त हो रहा था। चारों और सन्नाटा था। मुझे काफी आराम महसूस हो रहा था । मुझे मेरे पाँव हलके लग रहे थे। आधी नींद में मैंने महसूस किया की समीर मेरे पाँव दबा रहे थे। मैं एकदम हैरान रह गयी, क्यूंकि समीर इतने अच्छे तरीके से मेरे पाँव दबा रहे थे की मेरे पाँव का दर्द जैसे गायब ही हो गया था।
उनका मेरे पाँव को छूना मेरे जहन में अजोबो गरीब तूफान पैदा कर रहा था। अब मेरा मन मेरे नियत्रण में रखना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। वैसे ही मैं समीर के एहसानों में दबी हुई थी। उपर से आज उन्होंने मेरी इतनी सेवा की और बदले में मैंने और मेरे पति ने उनको कितना डाँटा पर फिर भी उन्होंने पलट कर ऊँचे आवाज से बात नहीं की यह सोच कर मुझे बुरा भी लगा और उन पर प्यार भी आया। पिछले दिन की घटनाओं से मैं ज्यादा उत्तेजित हो रही थी। समीर की अपनी आतंरिक उत्तेजना को मैं समझ सकती थी। मेरे पति को मेरे बिना कुछ दिन भी अकेले सेक्स किये बिना रहने में बड़ी मुश्किल होती थी। समीर तो इतने महीनों से अपनी पत्नी के बगैर कैसे रहते होंगे यह सोचकर मैं परेशान हो रही थी। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
मेरे पाँव में समीर के स्पर्श से मैं मदहोश हो रही थी। हालांकि समीर मेरे घुटनों तक ही पाँव दबा रहे थे और उसके ऊपर हाथ नहीं ले जाते थे। मैं उनके संयम पर आश्चर्य रही थी। ऐसा संयम रखना उनकी लिए कितना कठिन रहा होगा यह मैं समझ सकती थी। मुझे उनपर तरस आया। पहले अगर किसीने मेरे पाँव को छूने की कोशिश भी की होती तो उसकी शामत आ जाती। पर उस रात मैं चाह रही थी की समीर अपना हाथ थोड़ा ऊपर खिसकाएं और मेरी गीली चूत पर हाथ रखें। हे भगवान् यह मुझे क्या हो रहा था?
मैंने सोते रहने का ढोंग किया। मैं मन ही मन में उम्मीद कर रही थी की समीर अपना हाथ थोड़ा ऊपर की और खिसकाएं और मेरी जांघों को सहलाएं और फिर मेरी चूत के ऊपर के उभार को स्पर्श करें। पर समीर बड़े निकम्मे निकले। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। मैंने मेरी जांघों के बिच के सारे बालों को साफ़ कर रखा था।
शायद समीर को लगा होगा की मेरे पाँव का दर्द ख़तम हो चुका था। क्यूंकि वह मेरे पाँव दबा नहीं रहे थे बल्कि हलके से सेहला रहे थे। वह शायद मेरे पाँव के स्पर्श से आनंद का अनुभव कर रहे थे। उनके स्पर्श के कारण हो रहे उन्माद पर नियंत्रण में रखना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। न चाहते हुए भी मेरे मुंह से एक हलकी रोमांच भरी आह निकल गयी।
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