Bhoot To Chala Gaya – Part 10

iloveall 2017-05-18 Comments

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जब हम गाढ़ चुम्बन में लिपटे हुए थे की समीर का एक हाथ मेरी पीठ पर ऊपर निचे घूम रहा था। साथ साथ में मेरा गाउन भी ऊपर निचे हो रहा था। मेरी जांघों पर समीर का खड़ा कडा लण्ड रगड़ रहा था। समीर के मुंह से कामुकता भरी हलकी कराहट उनकी उत्तेजना को बयाँ कर रही थी। समीर को कल्पना भी नहीं होगी की मैं ऐसे उनकी कामना को पूरा करुँगी। इंडियन हिन्दी सेक्स स्टोरी हिंदी चुदाई कहानी

समीर के कामोत्तेजक तरीके से मेरे बदन पर हाथ फिराना और गाढ़ चुम्बन से मेरे बदन में कामाग्नि फ़ैल रही थी। उनका एक हाथ मेरी पीठ पर मेरी रीढ़ की खाई और गहराइयों को टटोल रहा था जिससे मेरी चूत में अजीब सी रोमांचक सिहरन हो रही थी और मेरी योनि के स्नायु संकुचित हो रहे थे। उस समय मैं कोई भी संयम और शर्म की मर्यादाओं को पार कर चुकी थी।

हमारे चुंबन के दरम्यान मेरा हाथ अनायास ही समीर की टांगों के बिच पहुँच गया। समीर के पूर्व वीर्य से वहाँ पर चिकनाहट ही चिकनाहट फैली हुई थी। जैसे ही मेरे हाथ ने उनके लण्ड को पाजामे के उपरसे स्पर्श किया तो मैंने अनुभव किया की समीर के पुरे बदन में एक कम्पन सी फ़ैल गयी। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और अपने पाजामे पर ही लण्ड पर दबाये रखा। दूसरे हाथ से उन्होंने अपने पाजामे का नाडा खोल दिया और उनका नंगा लण्ड अब एक अजगर की तरह मेरी हथेली में आगया। मैं समीर के लण्ड को ठीक तरह से पकड़ भी न पायी।

मैंने उसकी लम्बाई और मोटाई का अंदाज पाने के लिए उसके चारों और और उसकी पूरी लम्बाई पर हाथ फिराया। हाय दैया! एक आदमी का इतना बड़ा लण्ड! इतनी सारी चिकनाहट से भरा! मुझे ऐसा लगा जैसे कोई घोड़े का लण्ड हो। उस पर हाथ फिराते मैं कांप गयी। शायद मेरे मनमें यह ड़र रहा होगा की इतना बड़ा लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ ने में जरूर मुझे बहुत कष्ट होगा। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

मुझे मेरे मामा के लण्ड की याद आयी। उसके सामने तो मेरे पति राज के लण्ड की कोई औकात ही नहीं थी। समीर का लण्ड गरम और लोहे के छड़ के सामान सख्त था। उनके लण्ड के तल में कुछ बाल मेरी उंगलिओं में चिपक गए। उनके लण्ड के बड़े मशरुम की तरह चौड़े सर पर के छिद्र में से चिकना पूर्व रस बूंदों बूंदों में रिस रहा था और पुरे लण्ड की लम्बाई पर फ़ैल रहा था।

मैं समीर से चुम्बन में जकड़ी हुई थी और समीर के लण्ड को एक हाथ से दुलार रही थी। तब समीर ने धीरे से अपना सर उठाया और हिचकिचाते हुए पूछा, “नीना, मेरा…. आशय…. ऐसा…. करने…. का….. नहीं था…. मतलब…. मैं आपको… मैं…. यह कह…. रहा…. था…. अहम्…. मतलब…. तुम बुरा… तो….. नहीं … मानोगी? क्या मैं…. मतलब…. यह ठीक…. है….? क्या….. तुम…. तैयार…. हो…?” समीर की आवाज कुछ डरी हुई थी, की कहीं मैं उसे फिर न झाड़ दूँ।

मैं उस इंसान से तंग आ गयी। मुझसे हंसी भी नहीं रोकी जा रही थी। पर मामला थोड़ा गंभीर तो था ही। मैंने अपनी हंसी को बड़ी मुश्किल से नियत्रण में रखते हुए समीर की आँखों में सीधा देखकर कहा, “अरे भाई! अब क्यों पूछ रहे हो? इतना कुछ किया तब तो नहीं पूछा? सब ठीक है, मैं तैयार हूँ, तैयार हूँ, तैयार हूँ। अब सोचो मत, आगे बढ़ो। जो होगा, देखा जाएगा। मैं एकदम गरम हो रही हूँ। याद करो राज क्या कह रहे थे, ‘भूत तो चला गया, भविष्य मात्र आश है, तुम्हारा वर्तमान है मौज से जिया करो’ अब आगे की सोचो मत। अब मुझे जोश से प्रेम करो, मुझसे रहा नहीं जाता। मुझे अंग लगा लो आज की रात मुझे अपनी बना लो।” इतना कह कर मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं। मुझे उस रात उस पागल पुरुष से रति क्रीड़ा का पूरा आनंद लेना था।

समीर ने धीरेसे हमारे बदन के बिच में हाथ डाल कर एक के बाद एक मेरे गाउन के बटन खोल दिए।। मैं अपनी जगह से थोड़ी खिसकी ताकि समीर मेरे गाउन को मेरे बदन से निकाल सके। मैंने गाउन के अंदर कुछ भी नहीं पहना था। मैंने समीर के पाजामे का नाडा खोला। समीर ने पाजामे को पांव से धक्का मार कर उतार दिया और कुर्ते को भी उतार फेंका। तब हम दो नंगे बदन एक दूसरे के साथ जकड़ कर लिपटे हुए थे। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

जैसे ही हमने अपने कपडे उतार फेंके की समीर थम गए। वह मुझसे थोड़े दूर खिसक गए। मैंने सोचा अब क्या हुआ? मैंने अपनी आँखें खोली तो समीर को मेरे नंगे बदन को एकटक घूरते हुए पाया। कमरे में काफी प्रकाश था जिससे की वह मेरा नंगा बदन जो उनकी नज़रों के सामने लेटा हुआ पड़ा था उसे, अच्छी तरह निहार सके। मैं अपनी पीठ पर लेटी हुई थी। समीर की नजर मेरे पुरे बदन पर; सर से लेकर मेरी टाँगों तक एकदम धीरे धीरे संचारण कर रही थी।

मेरे खुले हुए बाल मेरे सर के निचे और उसके चारों और फैले हुए थे और मेरे गले के निचे मेरी चूँचियों को भी थोडासा ढके हुए थे। मेरे सर पर का सुहाग चिन्ह, लाल बिंदी रात के प्रकाश में चमक रही थी और समीर के आकर्षण का केंद्र बन रही थी। मेरी गर्दन और उस में सजे मेरे मंगल सूत्र को वह थोड़ी देर ताकते ही रहे। मेरे स्तन अपने ही वजन से थोड़े से फैले हुए थे। फिर भी जैसे वह गुरुत्वाकर्षण का नियम मानने से इंकार कर रहे हों ऐसे उद्दण्ता पूर्वक छत की और अग्रसर थे। मेरी फूली हुई निप्पलेँ मेरे एरोला के गोलाकार घुमाव के बिच जैसे एक पहाड़ी के नोकीले शिखर के सामान दिखाई दे रहीं थीँ।

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