Bhoot To Chala Gaya – Part 1

iloveall 2017-04-27 Comments

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मेरे पति राज ने मुझसे कहा, “अरे पगली, यह इक्कीसवीं सदी है। तू क्या हमेशा बच्ची ही रहेगी? तू इतनी खूबसूरत है तो मर्द लोग तो तुझे घूरकर देखेंगे ही। अभी तू दुकानों में खरीदारी के लिए जाती है तो क्या तुझे मर्द लोग घूरते नहीं हैं? यह स्वाभाविक है। उसमें घभराने या डरने की कोई बात नहीं है। हाँ अगर कोई तुझसे जबरदस्ती करे या तुझे अभद्र रूप से छेड़े तो महाकाली बनकर उसकी पिटाई कर देना. वह दुबारा ऐसी हरकत नहीं करेगा। डार्लिंग, देख, तू नौकरी करेगी तो तेरे दोस्त या साथीदार भी थोड़ा घूरना, थोड़ी हंसी मजाक, थोड़ी छेड़ छाड़ करेंगे और थोड़ी सेक्सुअल छूट भी लेंगे। यह तो चलता रहता है। उससे गुस्सा होने के बजाय उसका आनंद उठाना सीखो। जब तक हम पति पत्नी एक दूसरे के प्रति सम्पूर्ण रूप से समर्पित हैं तो यह सब चीज़ें कोई मायने नहीं रखतीं।

मेरे पति राज ने तब मुझे अपनी बात बतायी और कहा की उनके ऑफिस में भी ऐसे ही थोड़ा बहुत चलता रहता था। मेरे पति की भी अपने कॉलेज के समय में कई लड़कियों से घनी मित्रता थी। राज के कहनेसे मैं समझ गयी की उन्होंने उनमें से कई यों से चुम्माचाटी की थी तो कईयों के साथ सम्भोग भी किया था। मैं इस बारें में कुछ भी जानना नहीं चाहती थी। मेरे लिए तो बस यही काफी था की मेरे पति मुझसे बहुत प्यार करते थे और वह मेरा बहुत ध्यान रखते थे। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

मेरे पति राज की अनहद कोशिशों के बाद आखिर में मैंने मुम्बई की प्रख्यात एक अंतरराष्ट्रीय चार्टर्ड एकाउंटेंसी कंपनी में एक असिस्टंट की नौकरी स्वीकार की। मेरे पति ने मुझे पहले दिन ही बड़ा समझाया की रास्ते में और ऑफिस में भी अगर मुझे साधारण मर्द की निगाहों पर ध्यान नहीं देना है। और अगर कोई जबरदस्ती करे तो उनसे कैसे निपटना है, वह मैं अच्छी तरह से जानती थी।

‘समीर सर’ मेरे सीनियर थे। वह एक प्रभाव शाली, सुन्दर, सुडौल और लंबे कद के थे। कंपनी में वह पांच साल से काम कर रहे थे। वह मुझसे कोई पांच या छे साल बड़े होंगे। समीर सर और मैं हम दोनों एक ही बॉस के निचे काम करते थे। शुरू शुरू मैं तो मैं बड़ी ही नौसिखिया थी और समीर सर ने ही मुझे बहुत मदद की जिससे की मैं अपने काम में सक्षम बनूँ और हमारे बॉस मुझसे खुश रहें। समीर सर मेरी गलतियों और कमियों को छुपाते थे और मेरी क्षमता को बॉस के सामने उजागर करते रहते थे।

उनकी ऐसी सहृदयता से मैं बड़ी असमंजस में रहती थी। उनको ऐसा करने की जरुरत नहीं थी। मैं एक पढ़ी लिखी और अपने काम में सक्षम होने का दावा करती थी तो फिर मुझे अपना काम ठीक करना ही चाहिए था। पर मैं वास्तव में इतनी सक्षम थी नहीं और समीर सर यह भली भांति जानते थे।

मैंने भी कई बार जब बॉस ने मुझे कोई काम दिया तो उनसे यह बात कही की मैं उतनी सक्षम नहीं थी, जितना की मुझे होना चाहिए था। पर समीर सर ने हमेशा मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाया और मुझे सब सिखाया और मेरी भरपूर मदद की। इसी कारण से मैं धीरे धीरे अपनी कार्य क्षमता में आगे बढ़ पा रही थी, जिससे हमारे बॉस मुझसे प्रभावित थे।

पढ़ते रहिए, क्योंकि ये कहानी अभी जारी रहेगी..

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