Ger Mard Sang Pehli Baar
और थोड़ी सी देर मे ही मैं भी झाड गई, मेरी चूत से भी पानी से फुवारे छूटे और बिस्तर की चादर पे एक बड़ा सा गीला गोल घेरा बन गया। कितनी देर मैं वैसे ही नंगी हालत मे बेड पे लेटी रही। मुझे इस बात का भी विश्वास था के यहाँ ऊपर कौन आने वाला है। खैर अब दिन ब दिन रमेश जी मेरे दिमाग मे घर करते जा रहे थे, मैं उनसे चुदने को बहुत ही ललाईयत हो रही थी। बीच मे जब कभी मेरे पति गाँव आते तो मैं बड़ा खुल के उनसे चुदाई करती, सारी सारी रात हम दोनों नंगे सोते, एक रात मे दो-दो तीन-तीन बार चुदाई करते। मुझे लंड चूसना पसंद नहीं मगर मैं फिर भी थोड़ा बहुत पति को गरम रखने के लिए चूस लेती। कभी कभी वो कहते ,” सुजाता तेरी चूत तो चोदली अब तेरी गाँड मारने का दिल कर रहा है” तो मैं खुद तेल लाकर उनके ल्ंड और अपनी गुदा पे लगाती। वो मुझे उल्टा लिटा कर मेरे ऊपर लेटते और अपना तेल से चुपड़ा ल्ंड मेरी गुदा मे डाल देते, मुझे थोड़ा दर्द होता मगर उनके मज़े के लिए मुझे सब मंजूर था। मगर जब भी हम सेक्स करते न जाने क्यों, हमेश रमेश जी ही मेरे ख़यालों मे होते। मैं अपने पति मे भी रमेश जी को ढूंदती। एक दिन शाम को मैं ऊपर से खड़ी रमेश जी को नहाते हुये देख रही थी। नहाने के बाद जब वो ल्ंड को पोंछ रहे थे तो न जाने क्यों अपने ल्ंड से खेलने लगे।
खेलते खेलते ल्ंड तन गया। जब तन गया तो वो मुत्थ मारने लगे, उन्हे देख कर मैं भी गरम हो गई, मैंने कमरे का दरवाजा बंद किया और अपनी साड़ी वगैरह उतार कर मैं भी बिलकुल नंगी हो गई। जब उनका छूटा तो आनंद मे उन्होने अपना सर ऊपर उठाया और ऊपर उन्होने मुझे खिड़की मे खड़ी देख लिया। बेशक मैं एक दम से हट गई, मगर वो मुझे देख चुके थे। मुझे बहुत शर्म आई मगर अब क्या हो सकता था। खैर अगले दिन मैंने सोचा के मैं नहीं जाऊँगी मगर, 5 बजते बतजे मैं चाय का गिलास लेकर फिर से खिड़की मे खड़ी थी। जब रमेश भाई साहब आए तो उन्होने ने मुझे हाथ हिला कर अभिवादन किया और मैंने सर झुका कर नमस्ते की;। उन्होने कपड़े उतारे और रेज़र ले कर अपनी झांट साफ करने लगे, पहले ल्ंड के आस पास के बाल साफ किए फिर आँड के बाल साफ किए। उसके बाद ल्ंड हिला हिला कर उसे खड़ा किया। जब ल्ंड तन गया तो वो नीचे बैठ गए और ऊपर देखने लगे, मैं भी बेशर्मो की तरह ऊपर खड़ी उन्हे देख रही थी। उन्होने अपना ल्ंड अपने हाथ मे पकड़ा और इशारे से मुझे पूछा,” क्या तुम्हें ये चाहिए”। मैंने भी हाँ मे सर हिला दिया। उन्होने स्माइल किया और एक फ्लाइंग किस मेरी तरफ फेंकी।
उसके बाद कितनी देर हम एक दूसरे को इशारे करते रहे। इस बार उन्होने ने मुझे दिखा के मुट्ठ मारी और अपने वीर्य की एक बूंद अपनी उंगली पे लगा कर मेरी तरफ उछाली। उनकी इसी अदा पे मैं तो झाड गई। उसके बाद भाई साहब अक्सर हमारे घर आने लगे, वो पिताजी के पास बैठ कर बहुत सारी बातें करते, मैं सिर्फ चाय देने के लिए जाती, हम सिर्फ एक दूसरे को देखते, नमस्ते से ज़्यादा हमारे बीच कोई बात न होती, क्योंकि पिताजी वहाँ होते, मगर आँखों आँखों मे हम एक दूसरे से सब कुछ कह देते, वो मेरे चेहरे की , मेरे होंठों की, मेरे स्तनो की, मेरे भरी भरकम चूतड़ों की, सब की तारीफ करते और मैं उनकी नजरे जब अपने बदन पे महसूस करती तो आँखों आखोन मे ही उनका शुक्रिया भी करती। एक दिन शाम को मैं चाय बना रही थी के पिताजी ने मुझे आवाज़ लगाई, मैं उनके पास गई तो वहाँ रमेशजी भी बैठे थे, मैंने मुस्कुरा कर उन्हे नमस्ते किया। पिताजी बोले, ” अरे बहू, रमेश आया है एक कप चाय और बना लेना”। मैंने “जी पिताजी” कहा और रमेश जी को एक और स्माईल देकर कीचेन मे आ गई। अगस्त का महिना था, हल्की हल्की बूँदा बाँदी हो रही थी। मेरा मन तो वैसे ही उतावला हो रखा था। रसोई मे आलू की बोरी रखी थी।
मैंने अपनी साड़ी उठाई और उस आलू की बोरी के ऊपर बैठ गई और अपनी चूत एक आलू पे रगड़ के बोली,” रमेशजी अब आप नीचे आऊ और मैं ऊपर बैठ कर खुद करूंगी”। सच मे मैं आँखें बंद करके रमेशजी से चुदाई का एहसास कर रही थी। तभी मैंने अपना होश संभाला, और चाय के साथ पकोड़े भी तल कर उनको दिये। हल्की बूँदाबाँदी अब तेज़ बारिश मे बादल गई थी। पिताजी ने रमेशजी को खाना की भी दावत दे दी। मैं खाना बनाने की तैयारी करने लगी। ना जाने मेरे मन मे क्या आया, मैं स्टोर मे गई और स्टोर के पीछे वाले कमरे मे एक गद्दा बिछा आई। बारिश तेज़ पर तेज़ होती जा रही थी। खाना वाना खा कर रमेशजी पिताजी के कमरे मे ही लेट गए। मैं अपने कमरे मे लेटी थी, मगर मेरी नींद न जाने कहाँ उड़ी थी। घड़ी की टिक टिक 10-11-12 बाजा चुकी थी। पहले मैंने सोचा के हस्त मैथुन कर के अपनी प्यास शांत कर लूँ, मगर मन ने कहा नहीं, क्या पता आज रात… आज रात… और मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो जाती। खैर जब काफी देर नींद नहीं आई तो मैं उठ कर बाहर पेशाब के लिए जाने लगी। जब कमरे से बाहर निकली तो सामने ही रमेश जी खड़े थे। उन्होने मुझे अपनी बाहों मे भर लिया और मुझे धकेल के कमरे के अंदर ले गए।
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