Party Me Neelam Ki Chut Mili

Deep punjabi 2018-01-11 Comments

हैलो दोस्तों आपका अपना दीप पंजाबी एक बार फेर आपकी सेवा में एक नए अनुभव के साथ हाज़िर है। सबसे पहले तो आप सब को नए साल और लोहड़ी की हार्दिक बधाई हो। दुआ करते हैं के ये आने वाला साल आपकी ज़िन्दगी में नई उमंगे, खुशिया लेकर आये। जो भी खुवाहिशें पिछले साल पूरी नही हो पायी थी, भगवान उन्हें इस साल पूरी करे।

पिछले महीने दिसंबर में प्रकाशित हुई दो कहानियो अनोखा दान, और हम प्यासे ही रह गए – भाग 2, के बारे में बहुत से मेल्स आये हैं और मैं बहुत ही आभारी हूँ देसी कहानी की पूरी टीम का जिनकी वजह से हम लोग आपके मनोरंजन के लिए जगह जगह से मसाला इकठ्ठा करके लेकर आते है।

अब बात आती है परिचय देने की तो मुझे लगता है, उसकी तो जरूरत ही नही है। आप सब दोस्त जानते ही हो पंजाब से हूँ, और डेढ़ दर्जन के लगभग कहानिया आपकी सेवा में भेज चूका हूँ।

सो ज्यादा वक़्त जाया न करते हुए सीधा आज की कहानी पे आते है। जो के एक होने वाले नए किरायेदार के बारे में है। उसका नाम नीलम था। उसकी उम्र यही कोई 28-30 के लगभग थी, वो थोडा पढ़ी हुयी थी और यहां अपने परिवार समेत यूपी से यहां काम करने आये हुए थे। उसके परिवार में उसका पति, बच्चा कुल मिलाके वो 3 मेंबर थे। उसका पति मज़दूरी करता था। हमारे पड़ोस में रहने की वजह से अकसर उनसे मुलाक़ात होती रहती थी।

हुआ यूं के एक दिन मैं घर का कोई जरूरी सामान लेने स्कूटर पे बाज़ार गया हुआ था। तो वापसी पे मेरे ही गांव में किराये पे रह रही एक औरत नीलम जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया है, वो मिल गयी और मुझे अकेला देखकर उसने हाथ के इशारे से रुकने का इशारा किया। मैंने स्कूटर रोक लिया और उसकी बात सुनने लगा।

वो — क्यों दीप जी, घर जा रहे हो क्या ??

मैं — हांजी कहिये कोई काम था क्या ??

नीलम — हाँ मुझे भी गांव तक जाना है। कब से यहाँ खड़ी हूँ। कोई बस या आटो आ ही नही रहा। ऊपर से धूप भी देखो जान निकाल रही है।

मैं — हांजी गर्मी तो बहुत पड रही है। आओ बैठ जाओ, आपको भी गांव तक छोड़ देंगे।

वो मेरे साथ अपना सामान लेकर बैठ गयी और हम बाते करते घर की तरफ रवाना हो गये।

रास्ते में उसने बात जारी रखते हुए पूछा,” आपकी नज़र में कोई अच्छा सा मकान हो तो बताना। हमे किराये पे चाहिये। वैसे तो आपसे मुलाकात होते ही रहती है। फेर भी मेरा मोबाइल नम्बर ले लो और अपना नम्बर मुझे दे दो, ताकि एक दूसरे से सम्पर्क बना सके।

उस वक़्त मेरे मन में कोई भी ऐसी वैसी भावना नही थी तो मैंने बिन सोचे समझे अपना नम्बर दे दिया।
और वो अपने घर चली गयी।

करीब हफ्ते बाद एक अनजान नम्बर से लड़की की काल आई। जब मैंने रिसीव किया तो…

वो — हलो आप दीप बोल रहे हो ??

मैं — हांजी, दीप ही बोल रहा हूँ, पर क्षमा करना मैंने आपको पहचाना नही। आप कौन हो ??

वो — इतनी जल्दी भूल भी गए क्या ?

मैं — इतनी जल्दी, मैं कुछ समझा नही जी ।

वो — बड़े भूळकड़ किस्म के इंसान हो आप तो, अभी हफ्ता पहले ही तो हम बाज़ार में मिले थे और घर तक साथ बैठकर आये थे। याद आया या अभी भी और कुछ बताना पड़ेगा क्या ??

मैं — अच्छा…. अच्छा…. याद आ गया आप नीलम हो। माफ़ करना आपको पहचानने में भूल हो गयी। हांजी कहिये कैसे याद किया आज इतने दिनों बाद ??

वो — बस वही काम था, मकान ढूंढने वाला, है कोई आपकी नज़र में तो बतादो, जिस जगह हम रह रहे है न उस जगह का मालिक बड़ा खड़ूस किस्म का है। बात बात पे लड़ाई करने लगता है। यहां ये नही करना, वो नही करना। बस तंग आ गयी हूँ। रोज रोज़ के झगड़े से, इस लिये आपको फोन किया है।

मैं — हाँ ! ठीक है, मेरी नज़र में मेरे एक दोस्त का मकान खाली तो पड़ा था। लेकिन पता नही वो भाड़े पे चढ़ा या नही।आज ही उस से बात करके आपको दुबारा काल वापिस करता हूँ। मुझे आस है के वो मकान हमे मिल जायेगा।

वो — आपका बहुत बहुत धन्यवाद, और हाँ, जो भी हाँ या ना पता चले। मुझे बताना ताजो कही और भी मकान के बारे में बात कर सकू ।

मैं — ठीक है नीलम जी।

मैंने अपने दोस्त से मकान के बारे में पूछा तो उसने कहा,” दीप यार, मकान तो खाली पडा है, लेकिन कोई ग्राहक अच्छा मोल किराये के रूप में नही देता ! तो इस लिए कई सालो से बन्द ही पडा है। ये लो चाबी और किरायेदार से खुद ही किराये की बात कर लेना।

मैं उस से मकान की चाबी लेकर अपने घर आ गया और आकर अपने फोन से सुबह आये हुए नम्बर पे वापिस कॉल किया तो आगे से नीलम ने ही फोन उठाया।।

वो — हांजी दीप जी, आपके ही फोन का इंतज़ार कर रही थी। क्या बना अपने घर वाले मामले का??
मिल जायेगा हमे या कही और पड़ेगा।

मैं — अरे, नही नीलम जी, आपका काम हो गया है। आप काम काज से फ्री होकर इस पते पर पहुंचिये जो आपको मैसेज में लिखकर भेजा है।

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