Party Me Neelam Ki Chut Mili
सच मानो तो मेरा मन मेरे कण्ट्रोल में नही था। बार बार उसके चेहरे और उसके बदन को निहारे ही जा रहा था। थोड़ी देर बाते करने के बाद वो बोली,” आओ हम कमरे की दीवारे और फर्श साफ करते है।
मैंने भी सहमती में सर हिलाया और उसने झाड़ू उठाया और जहाँ तक उसका हाथ पहुंचा वो दीवारो पे झाड़ू फेर कर मकड़ियों के जाले उतार रही थी। मैं कमरे में पड़ा फालतू समान बाहर आँगन में निकाल कर रख रहा था। नीलम ने स्टूल उठाया और उसपे चढ़कर हाथ ऊँचा करके छत पे झाड़ू से सफाई कर रही थी।
उसने मुझे आवाज़ दी,” दीप जी, आप प्लीज़ स्टूल को पकड़ लो, जिस से मैं गिरु भी ना और मेरे भार का संतुलन स्टूल पे बना रहे। मैंने स्टूल को दोनों हाथो से पकड़ लिया और अब वो निश्चित होकर स्टूल पे चढ गयी।
झुका रहने की वजह से मेरी पीठ में दर्द होने लगा। तो मैंने सीधा खड़ा होकर स्टूल को छोड़कर नीलम की टाँगो को पकड़ लिया। मेरी इस प्रतिकिर्या से वो सकपका गयी और मेरी ओर देखने लगी।
मैंने उसकी तरफ देखते हुए सॉरी कहा। मैंने जैसे ही उसकी टाँगो से हाथ हटाया उसका संतुलन बिगड़ गया और वो गिरने लगी। मैंने फेर से उसे हाथो का सहारा देकर गिरने से बचा लिया। उसने धन्यवाद कहा और अपने काम पे दुबारा लग गयी।
गर्मी होने की वजह से हम दोनों पसीने से भीग रहे थे। मैंने अपने मन को काबू करने की बहुत कोशिश की लेकिन कहते है न लौड़े और घोड़े की लगाम जितना खिचोगे ज्यादा तंग करता है। वो सब मेरे साथ हो रहा था।
मैंने पहल करते हुए अपने हाथो से उसकी टाँगो को ऊपर की ओर सहलाना शुरू कर दिया। इस बार पता नही क्यू वो मुझे रोक नही रही थी। शायद उसे भी अच्छा लग रहा था। अब उसका हाथ सफाई करते करते रुक गया था और उसकी आँखे बन्द हो गयी थी और मेरे सहलाने को महसूस कर रही थी।
उसकी ऐसी दशा देखकर मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं बेझिजक उसकी टाँगों को जांघो तक सहलाने लगा। उसके मुंह से सी…. आह….. सी…. सी…. जैसी कामुक सिसकियाँ आने लगी।
मेने मन में खुद से बोला,” ले बेटा तेरी पार्टी का इंतज़ाम हो गया है। अब खुल के इंजॉय करले। मैंने उसे स्टूल से उठाकर वहां पड़ी खटिया पे ले आया। उसने एक बार भी मुझे दिखाने के लिए विरोध भी नही किया। खाट पे लिटाकर मैं उसके ऊपर आ गया और उसके होंठो पे अपने होठ रखकर उनका रसपान करने लगा। वो शायद बहुत दिनों से चुदासी थी।
इस लिए मेरा तहदिल से भरपूर साथ दे रही थी। मैंने कमीज़ के ऊपर से ही उसके उरोजों को दबाना शुरू कर दिया। परन्तु दबाने में थोड़ी मुश्किल हो रही थी। उसने मुझे थोडा पिछे हटाकर अपनी पसीने से सनी कमीज़ उतार दी। कमीज़ उतरते ही उसके बड़े बड़े उरोज़ हवा में झूलने लगे। मैं उसके उरोज़ों को मुंह में लेकर बारी से चूसने लगा।
पसीने की वजह से उनका स्वाद थोडा नमकीन जरूर था लेकिन फेर भी उन्हें चूसने में बहुत मज़ा आया। मैंने शरारत से कई बार उनकी निप्पल को अपने दाँतो से भी काटा तो उसके मुंह से आउच… सी.. हट जाओ प्लीज़, जितना चूसना है चूस लो लेकिन काटो मत, वरना आपके काटने के निशान देखकर, मेरे पति को मुझपे शक हो जायेगा।
मैंने उसकी मज़बूरी को समझते हुए उसे काटना छोड़कर निचे पेट की और चूमना आरम्भ कर दिया। उसकी हालात बहुत पतली हो रही थी और वो मुझे जलदी से लण्ड पेलने का वास्ता दे रही थी। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।
मैंने उसकी नज़ाकत को देखते हुए उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया। उसने एक झटके में ही सलवार अपने पैरों से निकाल कर खाट के निचे फेंक दी। उसकी चूत पे नामात्र ही बाल थे। जो के चूतरस लगने के कारण आपस में उलझे हुए थे।
मैंने हाथ की बीच वाली बड़ी उगली से उसकी चूत की गहरायी को नापा। मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए और अपना तना हुआ 6 इंची लण्ड उसके हाथो में थमा दिया और इशारे से उसे चूसने को कहा।
तो इसपे वो बोली,” नही दीप जी, मुझे ये सब अच्छा नही लगता, मैंने आज तक कभी अपने पति का लण्ड भी चूसा नही है। मुझे उलटी आ जाती है। सो प्लीज़ मुझे माफ़ करना, हाँ अगर आप चाहो तो मैं आपकी मुठ मार सकती हूँ।
उसकी ये बात मुझे जरा सी भी अच्छी नही लगी। लेकिन अब मरता क्या न करता वाली बात मुझपे लागू हो रही थी। मेरे तो जैसे सारे अरमान ख़ाक में मिल गए हो। सेक्स से पहले फोरप्ले का सपना चूर हो गया। मेरे चेहरे पे नामोशी छा गई। उसने भी महसूस किया के मेरे मना करने से इसका दिल टूट गया है।
वो मेरा दिल रखने के लिए दो बार मेरे तने हुए लण्ड को मुंह में लेने का प्रयास करने लगी। लेकिन हर बार उबकाई लेकर रह जाती। मुझे उसपे तरस आ गया। मैंने उसे छोड़ देने और सीधा लेट जाने को कहा। उसने मेरे आदेश का पालन किया और चुनरी से अपना मुंह पोंछ कर लेट गयी।
मैंने उसकी एक टांग उठाकर अपने कन्धे पे रखी। जिस से उसकी चूत का मुंह जरा सा खुल गया और अपना, उसके थूक से लबरेज़ लण्ड उसकी कामरस उगलती चूत के मुंह पे रखकर हल्का सा धक्का दिया तो उसकी ज़ोर से आह्ह्ह्ह्ह्… निकल गई।
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