Aur Hum Pyaase Hi Reh Gaye – Part 2

Deep punjabi 2017-12-26 Comments

हलो दोस्तों आपका अपना दीप पंजाबी काफी समय बाद आपकी सेवा में इस कहानी का अगला पार्ट लेकर हाज़िर है। इस कहानी का पहला पार्ट आप यहाँ पढ़ सकते है।

वैसे तो मेरी पहचान बताने की जरूरत नही है। पुराने दोस्त तो मुझे जानते ही है।लेकिन जो नए दोस्त इस साईट पे आये है। उनके लिए बतादू के मैं दीप पंजाबी, श्री मुक्तसर साहिब पंजाब से हूँ। मेरी डेढ़ दर्जन के करीब कहानिया इस साईट ने पब्लिश की है। जिसके लिए मैं तह दिल से इनका शुक्र गुज़ार हूँ।

आप ने मेरी एक पुरानी कहानी तो पढ़ी होगी। जिसमे मैंने एस.टी.डी/पी.सी.ओ में एक पड़ोसन भाभी के साथ रोमांस के दौरान ऊपर से उसकी बेटी आ जाने जिक्र किया था, जिन दोस्तों ने नही पढ़ी वो मेरी “अधूरी प्यास” नाम की कहानी जरूर पढ़े। ये कहानी उसी कहानी का अगला भाग है।

अब आपका ज्यादा समय खराब न करते हुए सीधा आज की कहानी पे आते है।

पिछली कहानी में आपने पढा ही होगा के वो भाभी मुझे अकेले में ही अपने घर पे बुलाती थी। गर्मियों के दिन थे, तो एक दिन ऐसे ही दुकान पे अकेला था। उस भाभी का आना हुआ। वो आते ही बोली,” दीप थोड़ी देर के लिए फ्री हो क्या ?

मैं उस वक्त हिसाब किताब जोड़ रहा था तो बही खाता की किताब बन्द करके उसकी बात पे ध्यान देने लगा।

मैं — हाँ भाभी बोलिये, क्या मदद कर सकता हू आपकी आज मैं ??

वो — आज सुबह से ही किचन में लाइट की दिक्कत आ रही है। सुबह से फ्रिज़ भी बन्द पडा है। एक बूँद भी घर पे पीने वाले ठंडे पानी की नही है।
प्लीज़ आकर देख दो कहाँ से खराबी है? इस वक़्त कोई आस पड़ोस में बिजली ठीक करने वाला भी नही मिलेगा और थोड़ी देर में बच्चे भी स्कूल से वापिस आने वाले है।

मैं — लेकिन भाभी मुझे तो रिपेयर का काम नही आता, हाँ मेरा एक दोस्त है, उसे फोन करके बुला लेता हूँ। अगर आपको कोई ऐतराज़ न हो तो !

वो — नही किसी को भी नही बुलाना, आप आओ और एक बार देख आओ, समझ आये तो ठीक कर देना वरना वापिस लौट आना।

मैं — ठीक है भाभी ।

दुकान का दरवाजा बन्द करके मैं उसके साथ ही उसके घर चला आया।

हमारे घर आते ही भाभी ने गली वाला दरवाजा बन्द कर दिया। मुझे थोडा आभास हो गया के ये मुर्गी आज हलाल करके ही छोड़ेगी। शायद आज भी किसी बहाने से बुलाकर लाई है। उस वक्त हम दोनों के इलावा घर पे कोई भी नही था। सो डरने और झिझकने का तो सवाल ही नही पैदा होता था।

भाभी मुझे किचन में ले गई। उनका किचन बहुत ही छोटा सा था। काफी सामान पड़ा होने की वजह मुश्किल से ही दो बन्दे एक साथ खडे हो पाते थे। भाभी मेरे आगे और मैं उनके पीछे खड़ा था। एक कोने में उनका नया फ्रिज़ पड़ा था। उसका दरवाजा खोलकर वो ली,” ये देखिये एक दम शांत पड़ा है फ्रिज़, इसके अंदर जरा सी भी ठंडक नही है और इसके बीच पड़ा सामान खराब हो रहा है, इसमें लाइट नही आ रही। कल शाम तक तो सब बढ़िया चल रहा था। अभी नया लिये को 3 महीने भी नही हुए है। 9 महीने के लगभग की गारंटी भी पड़ी है।

मैं – भाभी फेर आप मेरी बात मानो तो किसी को भी न दिखाओ इसे, क्योके नया होने की वजह से इसकी गरंटी पड़ी है। यदि किसी भी और मिस्त्री ने इसकी रिपेयर की तो इसकी गरंटी खत्म हो जायेगी।ये मत सोचना के मैं काम से भाग रहा हूँ, मेरी वजह से आपका नुकसान न हो जाये बस मेरा यही मकसद है। आप मेरी मानो तो जिस जगह से आपने नया फ्रिज़ खरीदा है। उस दुकान के मालिक को फोन करो। उनका आदमी घर पे आकर फ्री में ठीक करके जायेगा। यहाँ से किसी से करवाओगे तो पैसे भी अलग से लेगा और गरंटी भी खत्म कर देगा।

वो — वो मुझे नही पता, मुझे तो इतना पता है के तुम इसे चला सकते हो और इस वक्त पानी भी नही है पीने वाला घर पे। कब शहर से इसकी रिपेयर वाला आएगा और कब चालू करके जायेगा तब तक तो घर में कोहराम मच जायेगा और इतना कहकर तुम बचकर नही जा सकते। हाँ जितनी तुम्हारी फीस बनी बता देना, दे दूंगी। अब जल्दी से काम पे लग जाओ।

मैं – चलो ठीक है, जैसी आपकी मर्ज़ी, आपके घर पलास तो होगा न ले आओ, देख लेते है।

भाभी — हाँ है, एक मिनट रुको अभी लेकर आती हूँ।

और जैसी ही वो पीछे, बाहर जाने के लिए मुड़ी तो आगे जगह कम होने की वजह से मेरी और अपनी गांड करके निकलने लगी तो उसकी गांड मेरे लण्ड से घिसड गयी। मानो जैसे सुखी बेलों को पानी मिल गया हो। एक पल के लिए तो जैसे मज़ा आ गया। दिल तो चाह रहा था के जैसे ये पल ऐसे ही यहां रुक जाये।

मैंने भी उसको कमर से पकड़ लिया और कुछ पल के लिए ऐसे ही रहने का इशारा किया। वो मेरा इशारा समझ गयी और हल्की सी स्माइल से हंस दी। उसकी हंसी को ग्रीन सिग्नल समझकर मैंने भी पहल करने की हिम्मत करदी। मैंने उसको पीछे से ही पकड़कर कान की पेपड़ी पे हल्का हल्का काटना शुरू कर दिया।

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