Badi Mushkil Se Biwi Ko Teyar Kiya – Part 21

iloveall 2017-02-27 Comments

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अब आगे की कहानी – उस समय तो मैं अपने बदन की आग में झुलस रही थी और देख रही थी की राज भी उसी आग में तड़प रहा था। मैं भी राज की और आकर्षित थी और शायद मेरे मन में भी राज को पाने की कामना की आग भड़क रही थी। मैं उसे अनदेखा करनेकी कोशिश में लगी हुई थी। पर उस दिन जब राज ने मेरी आँखों में देखा तो मैं पागल से हो गयी।

मेरे हर एक अंग में उत्तेजक काम वासना की अग्नि भड़कने लगी। मैं राज की ऋणी थी। राज ने मेरे लिए अपना जीवन दाँव पर लगा दिया था और वह मेरे कारण उस रात को मुश्किल से मौत के मुंह में से बच निकला था। मेरे ह्रदय में एक भूचाल सा उठ रहा था। मेरी नैतिकता और निष्ठा की नींव हील रही थी, कमजोर हो रही थी। उसके लिए मेरे पति का भी तो बड़ा योगदान था।

मेरा पति अनिल मुझे उकसा रहा था की मैं राज से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करूँ। एक अजीब सी स्थिति बन रही थी। अगर मैं यह कहूँ की सब मेरी मर्जी के खिलाफ हो रहाथा तो वह सच नहीं था। मैं राज को अपना सर्वस्व देना चाह तो रही थी पर सामाजिक बंधनों और प्रणालीयोंके बंधन में बंधा हुआ मेरा मस्तिष्क इसकी इजाजत नहीं दे रहा था। पर मन मष्तिष्क की बात कहाँ सुनता है। इसी कारण जब मेरे पति मुझे उकसा रहे थे तो मेरे पॉंवों के बिच मेरी योनि से जैसे मेरे स्त्री रस की धार बह रही थी।

अचानक राज ने अपना एक हाथ मेरे गाउन के ऊपर मेरी छाती पर रखा। मैं अज्ञात डरके मारे काँप उठी। राज मेरे स्तनों को हलके से सहलाने की कोशिश कर रहे थे। वह डरते थे की कहीं मैं कोई विरोध न कर बैठूं। पर मेरे हाल ही कहाँ थे की मैं कुछ करूँ। मेरे पॉंव एकदम ढीले पड़ गए। मैं कुछ भी बोल न सकी। मेरी बुद्धि कह रही थी की मैं राज का हाथ हटा दूँ, और मन कह रहा थी की बस अब जो हो चुका वह हो चूका। अगर मैं चाहती तो राज का हाथ हटा सकती थी। पर मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

जब राज ने देखा की मैं उसके स्पर्श पर कोई विरोध नहीं कर रही हूँ तो उन्होंने पहली बार स्पष्ट रूप से मेरे स्तनों को अपनी हथेली में थोड़े दबाये। पुरे बदन में उठी मेरी कम्पन शायद राज ने भी महसूस की। मैं राज के सर पर झुकी और मेरे स्तनों को मैंने राज के नाक पर रगड़ा। अनजानेमें (क्या वाकई में? या फिर जान बूझकर?) ही मैंने राज को यह संकेत किया की मैं भी चाहती थी की वह मेरे स्तनों को स्पर्श करे।

राज ने अपना सर थोड़ा उठाया और मेरे होंठों को अपने होंठों पर दबा दिए। दूसरी बार राज मुझे चुम्बन करने की चेष्टा कर रहे थे। पर इस बार मैंने मेरे होठों को राज के होंठों पर चिपका दिए और पूरी उत्कटता पूर्वक मैंने राज के चुम्बन को अपनी सकारात्मक सहमति दे डाली। उतना ही नहीं, जब राज ने अपनी जीभ मेरे मुंह में डाली तो मैंने उसे चूसना शुरू किया। मैं राज को उस समय कोई नकारात्मक संकेत देने की स्थिति में थी ही नहीं। तब मैं भी राज के मुंह में अपनी जीभ डालकर उनके मुंह में अपनी लार छोड़ रही थी जिसे राज ने लपक कर चूसना शुरू कर दिया। अब राज और मैं एकदूसरे के बाहुपाश में बंध चुके थे और एक दूसरे को पुरे उन्माद से चुम्बन कर रहे थे।

हमारे बिच की मर्यादाओंकी दिवार जैसे ढहनी शुरू हो चुकी थी। अबतक राज मुझे पुरे सम्मान पूर्वक “अनीता भाभी” के नामसे सम्बोधित कर रहे थे और मैं उन्हें कभी राज तो कभी राज भाई साब कहती थी। अब राज ने मुझे चूमते चूमते बीचमें “अनीता, प्यारी अनीता, डार्लिंग तुम्हारे होंठ कितने रसीली और सुन्दर हैं। तुम कितनी प्यारी और सेक्सी हो।” इत्यादि कहना शुरू कर दिया और एक हाथ से मेरे स्तनों के उभार को अपने हाथों और उँगलियों में बड़े प्यार से अनुभव करना और उनको हलके से दबाना शुरू किया।

मेरे जहन में एक बात आयी। प्यार और सम्मान में कितना अंतर है? सम्मान में अपनापन नहीं होता। सम्मान में एक दुरी होती है। प्यार मेंअपनापन होता है। इंसान प्यार में सबकुछ दाँव पर लगा सकता है। पर सम्मान में जो कुछ अपनी मर्यादामें रहकर हो सकता है वह ही करता है। प्यार में “आप” का प्रयोग आवश्यक नहीं। अक्सर प्यार में “आप”, “तुम” अथवा “तू” में बदल जाता है। अब राज के मन में मेरे लिए और मेरे मन में राज के लिए एक अपना पन, एक प्यार पैदा हो गया था। जिसमें एक दूसरे के प्रति सम्मान तो था ही पर उसे बाहर से दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। हो सकता है उसका मुख्य हेतु अपनी शारीरिक भूख मिटाने का ही क्यों न हो। आखिर पति पत्नी के रिश्ते की नींव भी तो जातीय कामुकता पर ही खड़ी है न?

मुझे ऐसा लगा जैसे हमारे बिच की दूरियां उस समय ख़त्म होने जा रहीथी। राज मुझे अपनी समझ ने लगे थे। मुझे भी अब राज पर एक तरह का ममत्व और अधिकार का अनुभव होने लगा था। मैंने राज की प्यासी आँखों में झांका। अब मेरे लिए राज कोई पराये नहीं रहे थे। मुझे उनकी प्यास बुझानी थी। राज की प्यास बुझाने पर मेरी प्यास भी तो बुझनी ही थी। यही तो प्यार का दस्तूर है न?

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