Bhoot To Chala Gaya – Part 11
This story is part of a series:
उनकी उंगलियां अब मेरी जाँघों के बिच में थी। जैसे ही उनकी हथेली मेरी चूत के टीले पर पहुंची तो मैं अपनी चरम पर पहुंचले वाली ही थी। मैं इंतजार कर रही थी की कब उनका हाथ मेरी चूत की पंखुड़ियों पर पहुंचे। मैंने अपनी चूत के टीले पर से एक एक बाल साफ़ किये थे। वैसे भी मैं हमेशा अपनी चूत के बाल साफ़ करती रहती थी। राज को यह बात पसंद थी और शायद समीर को भी पसंद होगी। मुझे ज्यादा देर इंतजार करना नहीं पड़ा। समीर की उंगलियां मेरी चूत की पंखुड़ियों से खेलने में लग गयीं। मेरी चूत से जैसे मेरी कामुक उत्तेजना एक फव्वारे के रूप में निकलने लगी। समीर की उंगलियां एकदम भीग गयीं।
समीर की उँगलियों ने जैसे ही मेरी चूत की पंखुड़ियों का स्पर्श किया की मैं उन्माद के मारे एक जबरदस्त सिरहन का अनुभव करने लगी। ओह! वह क्या अनुभव था! मेरे बदन में जैसे एक बिजली सी दौड़ गयी और मेरा पूरा बदन जैसे उत्तेजना से अकड़ गया। मेरा दिमाग एकदम सुन्न हो गया और मैं एक अद्भुत सैलाब में मौजों के शिखर मर पहुँच गयी। मैंने जोर से एक उन्माद भरी आह्हः ली और उस रात एकदम झड़ गयी। मुझे बहुत कम बार ऐसा जबरदस्त ओर्गास्म आया होगा।
समीर ने मेरी चूत में से तेजी से बहते हुए मेरे स्त्री रस को अपनी उँगलियों को गीला करते हुए पाया तो उन्होंने मेरे देखते ही वह उंगली अपने मुंह में डाली और मेरा स्त्री रस वह चाट गए। उनकी शक्ल के भाव से ऐसा लगा जैसे उनको मेरा स्त्री रस काफी पसंद आया। मैं धीरे धीरे सम्हली।
समीर मेरी चूत की पंखुड़ियों से खेल रहे थे। कभी वह उनको खोल देते तो कभी उनके ऊपर अपनी उँगलियाँ रगड़ते। कभी वह अपनी एक उंगली अंदर डालते तो कभी दो।
अब मैं अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी। मुझसे अब धीरज नहीं रखा जा रहा था। मैंने समीर का सर अपने हाथों के बिच पकड़ा और उनको मैंने मेरी जाँघों के बिच की और अग्रसर किया। समीर समझ गए की मैं चाहती हूँ की वह मेरी चूत को अपनी जीभ से चाटे ।
समीर अपना सर मेरे पाँव की और ले गये और मेरे पाँव को चौड़े फैलाये जिससे की वह अपना सर उनके बिच में डालकर मेरी चूत में से रिस रहे मेरे रस का रसास्वादन कर सके।
साथ साथ में वह अपनी जिव्हा को मेरे प्रेमातुर छिद्र में डालकर मेरी उत्तेजना बढ़ाना भी चाहते थे। जब मैंने अपने पाँव फैलाये तो समीर मेरे चूत के प्रेम छिद्र को देखते ही रह गए। समीर ने पिछले छह महीनों से किसी स्त्री की चूत के दर्शन नहीं किये थे। उन्होंने झुक कर मेरी चूत के होठों को चुम्बन किया। उनकी जीभ का मेरी चूत से स्पर्श होते ही मेरे बदन मैं एक कम्पन फ़ैलगयी। मैं रोमांच से सिहर उठी। समीर उनकी जीभ से मेरी चूत की पंखुड़ियों से खेलते रहे और मेरी चूत के होठों को चौड़ा करके अपनी जीभ की नोक को उसकी गहराइयों तक डालते हुए मेरे वजाइना को चाटते रहे और चूमते रहे।
उनकी इस हरकत मुझे मेरी उत्तेजना की ऊंचाइयों पर पहुंचाने के लिए पर्याप्त थी। मैं नए उन्मादके सैलाब के शिखर पर पहुँचने की तैयारी में थी। उन्होंने मेरु उत्तेजना को भॉँप लिया और मेरी चूत के अंदरूनी हिस्सों में जोश खरोश से अपनी जीभ घिस ने लगे। मेरे से रहा नहीं गया और मैंने “समीर बस करो, मुझे एकदम उछाल महसूस हो रहा है। मैं ऊपर तक पहुँच गयी हूँ, मेरा छूट रहा है।” ऐसा कह कर करीब पंद्रह मिनट में मैं दूसरी बार झड़ गयी। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ की मैं पंद्रह मिनट में दो बार झड़ी, और वह भी बिना चुदाये।
इतने बड़े ऑर्गैज़म के बाद में पलंग पर धड़ाम से गिर पड़ी। परन्तु मेरे अंदर की ऊर्जा थमने का नाम नहीं ले रही थी। कौन कह सकता था की चन्द घंटों पहले मैं बीमार थी या एकदम थक कर निढाल हो चुकी थी। मैं वासना की कामुकता से एकदम गरम हो चुकी थी। मैं अब समीर का लण्ड मेरी चूत में लेने के लिए अधीर हो चुकी थी। मैं समीर से बेतहाशा चुदवाना चाहती थी। मेरे अंदर की शर्म और स्त्री सुलभ हया ने मेरी समीर से चुदवाने की भूख को कहीं कोने में दफ़न कर दिया था। अब वह भूख उजागर हो रही थी। मैंने समीर के सर को दोनों हाथों में पकड़ा और उसे मैं बिनती करने लगी, “समीर, अब मेरा हाल कामुकता की गर्मी में तिलमिलाती कुतीया की तरह हो रहा है। अब सब कुछ छोड़ कर मुझ पर चढ़ जाओ और मुझे खूब चोदो।”
पर समीर कहाँ सुनने वाले थे। उन्होंने अपना मुंह मेरी जाँघों के बिच में से हटाया और अपना हाथ अंदर डाला। फिर उन्होंने अपनी दो उंगलियां मेरी चूत में डाली। जब उनकी उंगलियां आसानी से मेरी चूत के छिद्र में घुस न सकी तो वह कहने लगे, “नीना तुम्हारा प्रेम छेद तो एकदम छोटा है। तुम्हारा पति राज इसमें कैसे रोज अपना लण्ड डाल सकता है?” यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
मुझे अपना छिद्र छोटे होने का गर्व था। क्यूंकि मेरे पति राज मजाक में कहते थे की, “भोसड़ी (चूत) ऐसी होनी चाहिए जो लण्ड को ऐसे ले जैसे लकड़ी में कील, या फिर पेप्सी के सील्ड टम्बलर में स्ट्रॉ। वरना वह भोसड़ा कहलाता है जिसमें लण्ड अंदर ऐसे समाता है जैसे लोटे में दाँतुन।” पर मैं समीर से ऐसा कुछ बोल नहीं पायी। मेरी लण्ड सख्ती से पकड़ ने वाली चूत के कारण मेरे पति राज को मुझे चोदने में अनोखा आनंद आता था। वह अक्सर मुझे कहते थे की उन्हें मुझे चोदने में किसी और औरत को चोदने से कहीं ज्यादा मजा आता था। वह मुझे चोदना शुरू करते ही उत्तेजना के कारण झड़ जाते थे।
Comments